प्रेम सुधा [भाग ९] | Prem Sudha [Part ९]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prem Sudha [Part ९] by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
3 देखने वाले बहुत है, बुझाने वाले थोडे है। (मिथ्यात्व के प्रसारक बहुत है, किन्तु उसके निवारक बहुत कम है ।) आग कितनी ही क्यो न फेले, असत्य कितना ही क्यो न॒ बढ जाय, ग्राखिर विजय सत्य की ही होती है । सत्य का एक ही उपा- सक हजारो को उस आग से-अ्रसत्य से-बचा लेता है और एक ही अ्रसत्यसेवी हजारो को मिथ्यात्व-मुसीबत-दु ख--मे डाल देता है। श्रत एव मनुष्य को शक्ति भर असत्य के उन्मूलन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। तो आठवे दर्शनाचार प्रभावना का अभिप्राय यही है कि आगे से श्रागे धर्म का प्रचार होता जाए। जो धर्म आपने सुना है, उसे दूसरो को सुनाते चलो । जसे तुम सिनेमा देख कर प्राते हौ तो उसका कथानक दूसरो को बडे रस के साथ सुनाते हो । सिनेमा कौ दलाली तो कोयले की दलाली है, किन्तु धर्म की दलाली से यहाँ और वहाँ भी मूख उज्ज्वल ही होगा । तो प्रभावना नामक श्राठवे ददौनाचारके श्राठ मेद है, जिनमे पहला भेद प्रवचनप्रभावना है, प्र्थात्‌ धर्मशास्त्र को स्वय पढना श्रौर दूसरो को पढाना या सुनाना, विचारो का श्रादानप्रदान करना, भर्म- शास्त्र के अध्ययत्त की व्यापक रूप से व्यवस्था करना और धर्म- ज्ञान का अधिक से अधिक प्रसार करना, यह सब प्रभावना के अन्तगंत है । दूसरी प्रभावना धर्मकथा है । गुरु की सेवा करके जो ज्ञान प्राप्त किया है, उसके द्वारा धर्मकथा करो और भूले-भटके लोगो को सन्मार्गं पर लगाग्नो । आप धनोपाजजन करते है तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है । धन प्राप्त हो जाने पर” उसे किसी दुनियावी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now