वीर का विराट आन्दोलन | Veer Ka Virat Andolan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माँ काली की प्रार्थना
.( रचयिता--धर्मप्राण ओऔी वीरः जी महाराज )
नव जग की मां तू काली है, प् भक्तों की अतिपाली है ।
जब असुरों ने उधम मचाया, मातृ शक्ति का मान मिटाया ॥
चक्र शूल भाले विशाल ले, तू ने खड़ग सँभालो है ॥ सव० ॥
तूने शुम निशुंभ पद्चारे, महिपासुर से दानव मारे |
रक्तवीज का रक्त बहा कर, हुईं निपट मतवाली है ॥ सब०॥
पार बार भीपर प्रह्मर कर, दु जनों को मार मार कर।
चंड मुँड का रुएड फारकर, बनी महा बिकराली है ॥ सब० ॥
शांत रूप जब तुमे सुदाय), तब दिनों को गले लगा4ा।
मातर-ल्ेद के शीतल जल की, तूने धारा ढली है ॥ सव० ॥
तुम को पुत्र सभी हैं प्यारे, बकरे भेड़े महिप बिचारे।
उन अनाथ जीवों का बध कर, भरौ खलो ने थाली है ॥ सब० |
माँ जगदम्बे क्या सोत्ती है ? तेरे यश की इति होती है।
` तेरे मन्दिर में बहती है, हाय रुधिर की नाली ह ॥ सव० ॥
भूते ठगो ने भ्रम फेलाया, तुभको हत्यारी :बतलागा |
वेद शास्र का श्रनरथ करते विद्या कपट की जाली है॥ सब० ॥
देवि कालिके क्यों सोती है, व्यर्थ समय अब क्यों खोती है।
वीर! पुत्र करी तेरे हित ही, आहुति होने वाली हे ।
लय जग की मां तू काली है ॥
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