वीर का विराट आन्दोलन | Veer Ka Virat Andolan

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Veer Ka Virat Andolan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माँ काली की प्रार्थना .( रचयिता--धर्मप्राण ओऔी वीरः जी महाराज ) नव जग की मां तू काली है, प्‌ भक्तों की अतिपाली है । जब असुरों ने उधम मचाया, मातृ शक्ति का मान मिटाया ॥ चक्र शूल भाले विशाल ले, तू ने खड़ग सँभालो है ॥ सव० ॥ तूने शुम निशुंभ पद्चारे, महिपासुर से दानव मारे | रक्तवीज का रक्त बहा कर, हुईं निपट मतवाली है ॥ सब०॥ पार बार भीपर प्रह्मर कर, दु जनों को मार मार कर। चंड मुँड का रुएड फारकर, बनी महा बिकराली है ॥ सब० ॥ शांत रूप जब तुमे सुदाय), तब दिनों को गले लगा4ा। मातर-ल्ेद के शीतल जल की, तूने धारा ढली है ॥ सव० ॥ तुम को पुत्र सभी हैं प्यारे, बकरे भेड़े महिप बिचारे। उन अनाथ जीवों का बध कर, भरौ खलो ने थाली है ॥ सब० | माँ जगदम्बे क्या सोत्ती है ? तेरे यश की इति होती है। ` तेरे मन्दिर में बहती है, हाय रुधिर की नाली ह ॥ सव० ॥ भूते ठगो ने भ्रम फेलाया, तुभको हत्यारी :बतलागा | वेद शास्र का श्रनरथ करते विद्या कपट की जाली है॥ सब० ॥ देवि कालिके क्यों सोती है, व्यर्थ समय अब क्‍यों खोती है। वीर! पुत्र करी तेरे हित ही, आहुति होने वाली हे । लय जग की मां तू काली है ॥




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