कविवर लाला भगवान दीं का परिचय | Kavivar Lala Bhagwan Deen Ka Parichya

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Kavivar Lala Bhagwan Deen Ka Parichya by चन्द्रिका प्रसाद -Chandrika Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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আক ( ७ ) भ्क्तिकाव्यः का आरंभकाल ही हिन्दी साद्दित्य का उन्नतिकाल था तो इसमें कोई अनीचित्य न होगा। भक्ति-मार्ग से अनुयायियों की दो मुख्य शाखाय होती हैं।एक লিহাখ্য श्रर्थात्‌ निशाकार परब्रक्ष की उपासना करती है, श्रौर दूसरी शाखा के लोग ईश्वर के सगुण श्रर्पाव्‌ साकार स्वरूप--शिव, विधा, राम, कृष्ण श्रादि--क्ली उपासना करते हैं। कबीर साहब उस समय के निगु शोपासकों में घुख्य गिने जाते हैं| पर उनको ओर उनके अनु- यायियों को तत्कालीन धामिक श्रान्दोलन फे चलाने में सफलता प्राप्त न हुई। देश की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहदी। यद्यपि निगेण श्रोर सगुण दैश्वर की विवेचना प्रस्तुत विषय से बाहर है, तब भी निगणोपासक अपने उद्देश्य में श्रसफल क्यों हुए एस बात को स्पष्ट करने के लिये प्रछगवशात्‌ इस सबन्ध में दो वात लिखना श्रयुक्त न होगा। निगण और सगुण दोनों ही ईश्वर के रूप हैं । दोनों ही की उपासना से परब्रह्म तक पहुँचा जा सकता है। छिन्तु ससार के दुःखजाल में फेसा हुआा मानव हृदय निगण ईश्वर को हृदयंगम नहीं कर सकता । शझआकारद्दीन, रूपहीन, नामद्दीन श्रोर श्रल्तद्य ईश्वर का चिन्तन या मनन ऐसे मनुष्यों की बुद्धि से परे है | हृसके विपरीत जो ईश्वर भक्त भयद्वारी है, भक्तों की पुकार सुनते ही स्वयं उनकी रक्षा के लिये दौड़ पड़ता है, जो ईश्वर सबनों की रद्धा एवं दुष्कर्मों का विनाश करके घमंसस्थापन के लिये दार बार अवतार लेता है, उसकी पूला के लिये मानव दय निसगंतः प्रृचष्षोजाता है, उषी के ध्यान श्रौर मलन कफो मनुष्य वड़े उत्साह और प्रम से करता हैं। साथ ही एक वात ह कि निरग्गंण से --जिसका कोई स्वरूप हो नहीं हे--हम प्रेम नहीं कर सकते | प्रेम करें किससे जब कोई पदार्थ या व्यक्ति हो तब न? एक साधारण पत्थर से भी प्रेम हो सकता है, और यदि उमे कोई सुन्दर आकार या रूप हो तो कहना हो क्या? परन्तु जिस पदार्थ की हम कल्पना ही नहीं कर सकते उससे प्रेम करें कैसे परन्तु निका स्प है , विशेषत: जो हमारे ही समान नररूपबारी है, हमारे ही समान सासारिक व्यवद्दारों में लिप्त कन | ~




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