भारतेन्दु ग्रंथावली [भाग १] | Bhartendu Granthavali [Part 1]
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
(বিগ और प्रसमादटिनी के निर्वेदन में भी छाछा जी किसने কঃ
পলক में पीड़ाक के लेग्वानुसार जामे নহাছঃ की तरह संसार की
सम्र चीजे दिखाई देती ८, परंतु नो लोग पुस्तक पदकर उसकी रद्द से टन
নীল পা কব গন দন मे नहीं बना सक्ते उनके लिए नाटक की रीति
टुत हितकाम है, सर वम्त श्रोवसवरी लिखता है कि संसार में দাহ
शात्ा की श्रपेन्षा भी नाव्कशाजला ज्यादा जरूरी है क्योंकि पढ़ने की
शपेन्ता अनुवय से लोग ज्यादा सीखते £ , ? देशों नाटक में वर्तमान!
द्रथा दनान वरप वह्ने की चदि जिम त्रान कोद्र समय श्रवनी গান!
से देग्व सकते धो ,
और सैयोगता स्वर्यवर में भी नाटक के प्रचार की ही भावना को
सामने सयक नदर और सृत्रधार से इस अक्रार छरा संवाद क्रराया
गया द्धः
नट--नाटकों के श्रमिनत करने में चित्र विनोद के सिवाय और क्ष्या
गुग है, श्रीर इसका प्रचार शिफ्ट जनों में कब से पाया जाता है ?
यूत्रधार--इसर्म सबसे विशेष गुगू तो थे प्रतीत होता 8 कि अ्रमि-
नय कर्ता श्रपने चित पर प्रग श्रव्िकार रख सक्ता है. श्रीर उसका भाव
चाहे मिस रीति से प्रगट कर स्क्ता है, श्रथिनय देखने से दशकों के
खिल पर उस चर्त्रि के प्रत्यक्ष देखने का सा श्रनुमव &1 जाता दे
बहन प्राचीन काल से देवता स्वग भें इसका सखानुभत्र करते श्राएं
निम विक्रमोर्बशी भे॑ लक्ष्मी स्वर्ववर दन्नात लिखा दे श्रीर (उत्तर गम-
र्त्रिः भे नी श्री रामावन के श्रमिनय से লাগান, দক বাদন্দল দা
के खिल पर बढ़े भारी असर होने का भाव दरसाया गया दे «
संयागता स्वयंत्रर परृ० ४,
भआउपनेखू, ব্যালন श्रीनिवास दास और अन्य अनेक समकालीन
छेपकी के प्रयास मे नाटकों का प्रचतन शी पर्याप्त हुआ। (मव्य दरिद्र
की धग्तावना में भारनतन्द ने बड़े खताय स॑ लिसा दे $
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