हिंदी नवजीवन [ अगस्त -1921] | Hindi Navjeevan [August- 1921]

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Hindi Navjeevan [August- 1921] by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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রি ছিলি भ्रम तौ, ५६ अभक्त १६५६ জান-ঘথ ইলা कहते हैं और अपने मित्रों के भी सामने मेरो सफाई कीजिए । | हमारे धम्मे-शाख हमें यह उपदेश करते हैं कि अप- ने पाणो की आहुति देकर भो अन्याय का सामना करना चाहिए । मेर पूण पिताजीने, स्वयै अपने चरित के द्वारा, मुझे यही शिक्षा दी है। छोग साहस-सम्पत्न हों तो इससे देश की हानि नहीं होंगी | आप के राज्यों के विषय में अनेक लेख मेरे पास आये हैं । कितनो ही शिकायतें मैंने जबानी भी सुनी हैं। परन्तु अबतक मैंने उनफा कुछ भी अंश मकाशित करना उचित न समझा। में यही आज्ञा किये रहा कि अन्तको सब तरह शान्ति हो जायगी, ओर अब भी मेरा यही खयाल है। बढ़े साम्राज्य को स्वेच्छाचारिता जहां एक धार नह हुई कि छोटे छोटे राज्यों की मनमानी भी उसके साथ बन्द हो जायगी । आत्म-शृद्धि ऐसी वस्तु है जिस की जड़ जमने के लिए कुछ समय दरकार होता है। परन्तु जह के लग जाने पर उसके फैलने में फिर विलम्ब नहीं रुगना। पर, अब तो में छुनता हूं कि कोई कोई राज्य चरखे ए उपहास करते हैं, कोई उसे एक रोग समझकर मि- टाने की इच्छा रखते हैं, कोई “ स्वदेशी › जैसे शाश्वत आन्दोलन को. रोकने के लिए छोगों को अनुचित रीति से दबाते हैं, कोई खादी पहनने के खिलाफ उठ खड़े होते है ओर खादी की टोपी पहनने को ' ज्ञु4 ? मानते है । इन बातों पर विश्वास करते हुए मुझे क्षोभ होता है। परन्तु मेरे पास इसके इतने प्रभाण मौजूद हैं कि ये बातें झूठ नहीं हो सकतीं । यह निश्चय जानिए कि यदि राजा-महाराजा मदद करें तो चर्बोँ और कर्घों के द्वारा काठियाबाड्डमं पहलेसे भी अधिक जीवन आ जाय । काठियाबाइ की आबादी छष्दीस लाख गिनी जाती है। वहां पांच लाख चरस आसानीसे -वर सकते ई । इससे प्रति वर्षं कमपे कम साहे सात छाख रुपया आमदनी हो सकती है। यदि काठियाबाद की बहने केवल आठही महीने भजन गाते हुए चर्खा कार्ते तो हर साल साठ छाख रुपये पैदा कर सकती हैं। इसके छिए आपको एक पाई भो खर्च न करना पढ़े । ऐसे आसान उपायसे यदि काठियाबादके कोग घन कमा तो कया आप उनफा घिक्कार करेंगे ? क्या उनका मजाक उड़ाषेगें ! > ০4 खादीफी-अतिट्ठा करेंगे । दरवारी पोषाक, भी खादीके हों और आप स्वयं भी अपनी पजाको बनाई खादी पह- न कर भूषित हँ । काठियाबादकी प्रजा तो भूखों मरे और मैंबेस्टरके अथवा जापानके छोग आप के घन पर चैन उद़ाव, यह राज-न्याय नहीं । आपके शाखपेसा छोग आपको यह बात समझायेंगें। यदि आप मलप्रऊ चाहते हैं तो अच्छी रुई की पैदावार कराइए, महीन चूत कातने और कपड़ा बुनने वालोंफो उत्साहित कीजिए । काठियावाडके पहाड़ों में रहने वाले राजाओोंको आमोद-अमोद की क्या आवश्यकता ? कु्तोंकी दोलियां वे अपने पास किसलिए रवखें? थे तो प्रजाके लिए अपने प्राण दें। पजा के दुःख से हुखी हों और प्रमाको खिलाकर आप खार्व । राजा बनिया और श्राह्यण शु रूपिया हो जाय तो घमे की शिक्षा कौन दे और रक्षा फौन करे ? मं यह नहीं चाहता कि काठियाबाड के लोग आप के राज्यों रहते हुए अँगरेजी राज्य के खिलाफ आन्दोलन करे और आपकी स्थितिको नाजुक বদাধি। आपकी नाजुक म्थिति मेरे ध्यानमें है। आपके प्रति मेरी सहानुभूति है। आपकी प्रजा भके ही अ-सहयोगी न हों, परन्तु में आप से नम्नता-पूर्वक अनुरोध फरता हूँ कि आप स्वदेशीको अपना एक भिन्न विभाग समझ्निए्‌ और प्रजाको सहायता देकर स्वतेत्रता-पूर्वेक उसका उत्कषे फीजिए । और भी एक निवेदन करूं ? काठियाबारमें श- राबकी दुकानोंक। होना किस तरह सहन हो सकता है ! आपको भी शराबके द्वारा कुछ आमदनी करनेकी आब- श्यकता है! जबकि खुद प्रजाही श्रावखोरी छोडने के लिए प्रयस्न कर रही है तब में तो आपके दरबारसे भी शराब की बोतलों के वहिप्कार की आज्ञा रखता हूं। जब कि श्री रामचन्द्रने एक धोबीकी बात सुन कर सती सीताका त्याग कर दिया तब अपनी प्रजाकी इच्छा को जान कर क्या आप छराबको काठियावादसे नहीं निकाल सकते! और आपकी देनोंमें अन्त्यजोंके छिए अछग गाडियां हों, उन्हें टिकट मिलने में फठिनाई हो, थे पके खाय, यह भी क्रिस तरह सहन हो सकता है? छोगों को एकत्र करके आप उनके साथ विचार कीजिए और उन्हें समझाइप कि भड्गी चमारों के साथ जो दुष्येयहार होरहा है वह दया-धर्म नहीं । वह तो अत्याचार है। आप से तो में यह आज्ञा करता हू कि आप अपने | इस तरह आप उन बेचारों को सुखी कीमिए और. दुाबारमें भी लादीकी-दीन-हीन छोगों की घुनी हुईं | उनके दिझसे मिकझने गाकी दृभा ढीमिए |




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