मानव - समाज | Maanav Samaz
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
119.12 MB
कुल पष्ठ :
466
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानव-समाज . . | अध्याय ?
: , (१) श्रम ही विधाता--हाथ श्रमका हथियार हो नहीं है ;
वह खुद श्रमकी उपज है | हाथके नये-दये उपयोगसे नई नस-नाड़ियाँ-
का . विकास - होता है श्र उसके द्वारा हड्डियॉपर भी प्रभाव, फिर
इनका. आनुवंशिक होना--एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़िश्रोंमें जाना--श्रौर
आगे . आनुवंशिक साधनोंके नये उपयोगोंका. श्रौर भी बढ़ना, इस
तरह क्रमशः मनुष्यका हाथ श्राज हजारों तरदके कामको सुन्दरता-
से कर सकता है । इस तरह अजन्ताके चित्रों, युसकालकी' मूर्तियों
तर तानसेन तथा बैजू बावरेके सस॒तंत्री स्वरोंको निकालनेमें उसका
हाथ सफल ।
लेकिन, हाथ शरीरसे अलगं-धलग चीज़ नहीं है, वह सारे शुरीर-
यंत्रका एक श्रवयवमात्र है । हाथकों जो लाभ हुमा, वह नहीं हो.
सकता था, यदि वह हाथ तंक ही महदूद रहता । शरीरका एक शवयव
दूसरे भागको प्रभावित करता है । स्तनधारियोंमें श्रंडेको बाहर
न निकाल, भीतर ही उसकी इद्धि श्र परिपाकके लिये गर्भाशय होता
है; साथ ही दूध पिलानेके लिये स्तनोंको भी मौजूद देखा जाता
है | यदि बिल्ली पूरी सफ़ द श्यौर नीली श्राँखोंवाली हो, तो बंद बराबर
बहरी देखी जाती है--श्रर्थात् उसके कानके बविकासमें बाधा. -पड़
जाती है । मनुष्यके हाथके विकासका भी उसके दूसरे श्वयवॉपर
इसी तरह श्रसर होता है । न न
समाज--दायकी श्रम-शक्तिके विकासके साथ मानवका प्रमुत्व
प्रकृतिपर श्र बढ़ चला, और इस प्रकार उसकी प्रगतिका रास्ता
खुल गया । वह लगातार श्रपने हाथ श्रौर उसके श्रमके नये-नये :
उप्योगोंका पता लगाता रहा ; साथ ही प्राकृतिक वस्तुश्रोंके नये-
नये इस्तेमाल उसे मालूम होते रहे । -श्रमके विकासका मतलब .
अधिक श्रर्जन, श्रघिक उपयोग, जिसके. _
लिये श्धघिक सइयोग श्र सहभोग होना लाजिमी था 1 -
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