मानव - समाज | Maanav Samaz

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Maanav Samaz by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानव-समाज . . | अध्याय ? : , (१) श्रम ही विधाता--हाथ श्रमका हथियार हो नहीं है ; वह खुद श्रमकी उपज है | हाथके नये-दये उपयोगसे नई नस-नाड़ियाँ- का . विकास - होता है श्र उसके द्वारा हड्डियॉपर भी प्रभाव, फिर इनका. आनुवंशिक होना--एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़िश्रोंमें जाना--श्रौर आगे . आनुवंशिक साधनोंके नये उपयोगोंका. श्रौर भी बढ़ना, इस तरह क्रमशः मनुष्यका हाथ श्राज हजारों तरदके कामको सुन्दरता- से कर सकता है । इस तरह अजन्ताके चित्रों, युसकालकी' मूर्तियों तर तानसेन तथा बैजू बावरेके सस॒तंत्री स्वरोंको निकालनेमें उसका हाथ सफल । लेकिन, हाथ शरीरसे अलगं-धलग चीज़ नहीं है, वह सारे शुरीर- यंत्रका एक श्रवयवमात्र है । हाथकों जो लाभ हुमा, वह नहीं हो. सकता था, यदि वह हाथ तंक ही महदूद रहता । शरीरका एक शवयव दूसरे भागको प्रभावित करता है । स्तनधारियोंमें श्रंडेको बाहर न निकाल, भीतर ही उसकी इद्धि श्र परिपाकके लिये गर्भाशय होता है; साथ ही दूध पिलानेके लिये स्तनोंको भी मौजूद देखा जाता है | यदि बिल्ली पूरी सफ़ द श्यौर नीली श्राँखोंवाली हो, तो बंद बराबर बहरी देखी जाती है--श्रर्थात्‌ उसके कानके बविकासमें बाधा. -पड़ जाती है । मनुष्यके हाथके विकासका भी उसके दूसरे श्वयवॉपर इसी तरह श्रसर होता है । न न समाज--दायकी श्रम-शक्तिके विकासके साथ मानवका प्रमुत्व प्रकृतिपर श्र बढ़ चला, और इस प्रकार उसकी प्रगतिका रास्ता खुल गया । वह लगातार श्रपने हाथ श्रौर उसके श्रमके नये-नये : उप्योगोंका पता लगाता रहा ; साथ ही प्राकृतिक वस्तुश्रोंके नये- नये इस्तेमाल उसे मालूम होते रहे । -श्रमके विकासका मतलब . अधिक श्रर्जन, श्रघिक उपयोग, जिसके. _ लिये श्धघिक सइयोग श्र सहभोग होना लाजिमी था 1 -




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