मानस - मुक्तिवाली | Manash Muktavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.83 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानस -मुक्तावली । दे
जिन्ह के लहै न रिपु रण ॒पीठी । नहिं लावहिं परतिय मन डोटी ॥
मंगत लहदद्॒हिं च जिन के नाहों | ते सर वर थोरे जग साहों ॥
बनालकाण्ड
खुनु मुनि संतन के णुण कहऊँ । जिन्ह ते में उनके चश रहऊे ॥
पट चिक्ार जित अझनघ अकामा । झचल अकिचन झुचि सुखधघामा ॥
अमित बोघ झअनोह सित भोगी । सत्यसन्ध कवि काचिंद येगो ॥
सावधान मानद॒ सद होना । घीर भक्ति पथ परम प्रचोना ॥
णुणागार ससार दुख, रहित बिगत संदेह ।
तजि सस चरण सरोज प्रिय, जिन्द के देह न रोह !!
निज णुण श्रवण खुनत सकुचाहों । परणुण सुनत अधिक हर्पाहों ॥
सम शीतल नि व्यागहिं नीती । सरल स्वसाव सबहि सन प्रीती ॥
जप तप घ्त दम संयम नेमा । णुरू गोविद चिप्र पद प्रेसा ॥
श्रट्ठा क्षमा. मइत्री दाया । मुद्ता सम पद प्रीति झमाया ॥
विरति विवेक दिनय बिज्ञाना | बोध यथारथ वेद पुराना ॥
दम्भ मात मद करहि न काऊ | भूलि न देहिं कुमारग पाऊ ॥
यावाहि खुनहं सदा मम लोला । हेतु रहित परहित रत शीला ॥
उु मुनि साघुन के गुण जेते । कहिं न सकहिं शारद श्रुति तेते ॥
आारण्यक्राण्ड
उमा सन्त कर इहै बड़ाई। मन्द करत जा करइ भलाई ॥
सुन्द्रकाण्ठ
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