मेरा मुझमे कुछ नहीं (१९७६ ) ऐ सी ५१८२ | Mera Mujhme Kuchh Nahi (1976) Ac 5182

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Mera Mujhme Kuchh Nahi (1976) Ac 5182 by अमृत साधना - Amrat Sadhna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करो सत्संग गरुदेव से १७ सोचता है कि मैं जामा ही हुआ हूं, उसको जगाने की क्‍या सभावना है ? और मजा है कि तृूम अपनी गहरी नींद में भी सपना देख सकते हो, कि तुम जागे हुए हो । जामे हुए होने के भी सपने आते हैं। जब आदमी नींद में देखता है कि मैं जाग गया, तब ऐसे आदमी को जगाना बडा मुदिकल है । अज्ञान में भी ज्ञान के सपने आते हैं । न मालूम कितने अज्ञानी हैं, जो अपने को पष्डित समझते हैं ! पण्डित है ही उस अज्ञानी का नाम, जिसने अपने को ज्ञानी समझ लिया हैं। जिसने अपने अज्ञान को ढांक लिया है शास्त्रों से लिए गए उघार श॒ब्दो में । है ১৮৮ इसलिए ध्यान रखना, वास्तविक अज्ञान का बोध तो व्यक्ति को गरु के चरणों । में ले जाता है और ज्ञान का अहकार शास्त्रों में । तब आदमी शास्त्र खोजता है, गुरु नही । क्योंकि शास्त्रों में समर्पण करने की कोई जरूरत नही है । शास्त्र तो निर्जीब ' है। उन्हें तुम चाहा जेसा उनका अर्थ कर लो । गुरु को तो तुम न बदरू सकोगे। शास्त्र को तुम बदल सकते हो । _মুহ বন | बदलेगा... और गुरु की बदछाहट का पहला सूत्र तो यही है, कि হত वह तम्दें | जगाएगा और बताएगा, कि तुम गहरी नीद में साए हुए... तुम्हें इस होश से भरेंगा कि तम अज्ञानी हो, निपट अज्ञानी हो । वह पहले तुम्दारी आंखे अधक्ता के प्रति खोलेग[ | क्योकि अधकार के बाद ही प्रकाश की, सुंभावना है । गिरा | ही उठ सकता है । और जो सोचता है, मैं उठा ही हुआ हू, शिख़र्‌ पुर विराजमान हूँ, उसको उठाने के सब उपाय व्यर्थ हो जाते हैं.। कोई ज्ञानो उसको उठाने की झंझट में पड़ता भी नहीं । अब हम कबी र के इस वचनों को समझने की कोशिश करे । इस कहानी के संदर्भ में बहुत सी बाते साफ हो जायेगी । गुरुदेव जिन जीव की कल्पना ना मिदं + सूत्र है इस सारी वचनावली का--' कल्पना अज्ञानी कल्पना में जीता है। कल्पना का अर्थ है कि झूठा जगत, जो 4 পাশপাশি अपने मन से बना लिया है; जो है नहीं, पर जो उसने आरोपित कर लिया बम, मित्र हैं। जहां अपना नहीं है कोई, वहां सोच लेता है, अपने हैं। जहां जीवन प्रतिप्ल मृत्यु के कगार पर खड़ा है, वहां सोच लेता है, कि सदा जीना है ! जहां धन धोखा है, वहां उसी को सब कुछ मान्‌ कर जी छेता है। जहां देह আজ ) | और कल नहीं होगी, उस देद् के साथ ऐसा रससिक्त दो जाता है, कि जंसे यही




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