श्रमण भगवान महावीर (१९१८)ऐ सी १४४ | Shaman Bhagvan Mahavir (1918)ac 144

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Shaman Bhagvan Mahavir (1918)ac 144 by प० कल्याणविजयजी गणी - Pt. Kalyanvijayeeji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11] जीवन के ३० वर्ष का लंबा समय भगवान्‌ ने कहाँ व्यतीत किया, कौन-सा वर्षोचातुर्मास्थ किस स्थान में किया और वहाँ क्या-क्या धर्म- काये हुए, कौन-कौन प्रतिग्रोध पाये इत्यादि बातों का कहीं भी निरूपण नहों मिलता । पिछले चरित्रों में भगवान्‌ के केवछि-जीवन के कतिपय प्रसंगों का वर्णन अवश्य दिया है, परन्तु उनमें भी काछ-क्रम न होने से चरित्र की दृष्टि से वे महत्त्वद्दीन हो गये हैँं। यह सब होते हुए भी हमने ने चरित्रों का उपयोग किया है। आगे हम इनका क्रमश: कक खः ओर ग' चरित्र के नाग से उल्टेख करेंगे। हमारी शिकायत केवल चरित्रों के संबन्ध में ही नहीं बल्कि मौलिक सामग्री की अव्यवस्था के सम्बन्ध में भी है । आचाराज्जसूत्रकार भगवान के तप के संबन्ध में लिखते हैं--- “छद्रेणं एगया भुंजे अहवा अद्वमेणं दसमेणं লাভা হ্যা भुंजे 1! अर्थात--'वे कभी दो उपवास के बाद भोजन करते हैं, कभी तीन, कभी चार और कभी पाँच उपवास के अन्त में भोजन करते हैं ।' अब आवद्यक-नियुक्ति, माध्य ओर चूर्णिकार का मत देखिये । इन मन्थो भें महावीर के सम्पूणं तप ओर पारणा के दिन गिनाये गये हैं, जिनमें चार और पाँच उपवास के तप का उल्लेख नहीं है । इसी प्रकार आवश्यक मे महावोर को छद्यस्यावस्था का समय षरा्र १२ वषं ६ मास और १५ दिन का माना है ओर इसी दिसाब से उनके तप और पारणों की दिन-संख्या मिछाई है; परन्तु महावीर ने मार्गशीषे कष्णा १२०मो को दीक्षा छी और तेरहवें वर्ष बैशाख शुद्धा १० मी को केबछज्ञान पाया । यह छद्मस्थकाल सोर वर्ष की गणना से १२ वषं ओर सादृ पाँच मास, प्रकमं संवतसर को गणना से १२ ब्ष साढ़े सात मास ओर चान्द्र संवत्तघर की गणना से १२ वषं सादे नौ मान्न होता है । आवश्यककार की कही हुई १२वर्ष साढ़े छः मास को संख्या किसी भी व्यावहारिक गणना से सिद्ध नष्ट होती । सामभी की इस अव्यवस्थितता ने हमारे मार्ग में कठिन समस्या उपस्थित की । जिस सामप्री के भरोसे हमने कार्य प्रारंभ किया था




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