धर्म्म चंद्रिका | Dharmm Chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्म्मा निर्णय । १९
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मुक्तिषदकी प्राप्त होसके, वद्दी धर्म है। जीत मनुष्य जोनिमें धमफे
आश्रयसे प्रकतिके अनुकूल चलकर प्रकतिकी फ्रमोन्नति शील धाराम
अपनेकों श्रनायास छोड़ देता हुआ धीरे धीरे शद्गसे चेश्य, चैश्यसे
ज्त्रिय, जत्रियले शाह्मण, प्राह्मणमें भी चिद्धान् कर्मी तत्तश पर
आत्मए दोकर अन्तमें मोक्तको प्राप्त होता है। यही चेतन जगतमें अभ्यु-
दय और निःश्षेयस देनेवाला प्रृतिके अनुकूल घर्मका अक्ुशासन है।
इसी प्रकार भगवादकी अलोकिक इच्छाकपिणी धराधारिका धर्मे-
शक्तिके द्वारा जड़चेतनात्मकसस्वन्धी विशेष धारण দিবা অক্ষ
होती हैं ।
धर्माङ्गनिणंय ।
(२)
पहिले थचन्धमे धमके चार्वभौत स्वरूपा वर्णन किया गया दै
जो प्रत्येक् देशकाल पात्रके लिये समान रुपसे कस्य्राणकारी हो
सकता दै । श्रव इस प्रवन्धमें साधारण धर्मके सार्चभौमभाव प्रति-
पादक श्रनरा वर्णन तथा देशकरालपात्रानुसार उसके विशेष विशेष
भावोका बर्णन किया जाताहें। पृज्यपाद महर्पियोंने उल्लिखित
विचाराहुलार धर्मके चार विभाग किये हैं, यथा--
२. साधारण धर्म
२, विशेष घर्म ।
३. असाधारण धर्म्म ।
४. आपदू घम्मे ।
साधारण धम्म के विपयमम आगे कहा जायगा। विशेष धम्मे उसको
कहते हैं कि जो धर्म्म के विशेष विशेष अधिफाराहुसार विशेष विशेष
झूपसे विहित हो । साधाणण धर्मकी अपेक्ता विशेष धर्म्पको मद्दिमा
अपार है फ्योकि जोच विशेष धर्म्मके साधन द्वारा द्वी अपने अपने
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