राजविद्या | Rajvidhya

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Rajvidhya by शंकरोत्त्का - Shankarottka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) की तथा इसका श्षत्रियों के प्रत्येक घर २ में प्रचार होने के उद्देश्य से पाकृत राजवबिदया का संस्कृत काव्यानुवाद तथा भाषानुवाद प्राप्त स्वर्ण पदक आद्रुकथि कविराज पं०रविदत्त शास्त्री आयुर्वेदाचार्य धन्वन्तरि की विद्या परिस्क्ृत तथा रसिक लेखनी से कराया। राजविद्या सूर्य बंशी क्षत्रियों के घराने की विद्या है जो कि चिरकाछ से छप्त हो गई थी जिसे मने आपके ही पुण्य प्रताप से प्राप्त कर इस नवीन रूप मं थविण्ट भक्ति भाव से आपकी ही चिद्याको आपके ही भेट किया हू साथ ही भें आशा करता हूं कि क्षत्रिय जाति को उन्नतिशील बनान बाली, तथा खुख, शान्ति, और स्थिति पूर्वक राज्य करने की शिक्षा देने घाली इस राजविद्या के प्रच्नार के लिये श्रीमानजी पूर्ण सद्दानुभूति प्रदान कर भेरे परिश्रम को सफल बनाकर कृताथ करावंगे। गॉकरीय उपदेश हैं -सुख-शा।तति-स्थिति मर्म । भूप राजविद्यानुगत, करें सभी यदि कर्म ॥ तच्छ सेवक रावराजा, गुलावसिद.




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