निश्चयधर्मका मनन | Nishchyadharmaka Manan

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Nishchyadharmaka Manan by श्रीमान ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Shriman Bramhchari Seetalprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निश्चयधमेका मनन | [९ हू और सदा ही कायम रहूंगा, क्योंकि में एक वु हे । नोर वस्तु होती है उप्तकी सत्ता सदा कालसे ही होती है, उप्तका कमी नाश नहीं होता और न कभी किप्तीके द्वारा उप्तकी सत्ताका उत्पाद होता है | मुझमें एक ऐसा अपूर्व गुण है जो मेरे सिवाय अन्य पांच द्रव्योंमें नहीं है। चेतनताका, भिप्तके बलसे में अपनी संप्तार अवस्थामें इच्छानुपार परिणमन करता हं, एक विषयपर रक्षय धा, परन्तु में उसे एकाएक छोड़ दूमरेषर छे जाता ह; क्रोधका माव होनेपर भी एकाएक शांत होजाता हं, शोक्रातुर होनेपर भी वातकी লাম কামান होनाता ह । चद्रनखके जीवम पुत्रवियोगसे जबर रोकाग्नि जरु रही थी ओर वह उससे व्याकुछ हो रहा था तत्र श्रीरामचन्द्र जर लक्ष्मणक्रे मनोहर रूपको देखकर वह एकाएक कामातुर होगया, ऐसी चेतनता मेरे हीमें है-पुद्छ, घमोस्तिकाय, अधमा स्तिकाय, कालाणु और आकाशमें नहीं है । चेतनता एक गुण है जो गुणीके आश्रयके बिना ठहर नहीं सकता। इत्त मुख्य गुणका गुणी मै नीव है। मेरा गुण भी अविनाशी है ओर में भी अविनाशी ह। भव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभवपनेसे रहित ऐसे चेतन गुणका स्वामी होकर मैं निश्चयसे रागी, देषी, कोधी, मानी, मायावी, देव, नारकी, मनुष्य, पशु, स्त्री, पुरुष, बालिका आदि रूप नही हूं। में चीतरागी ह, ज्ञानावरणादि द्वव्यकर्मोके मेलसे रहित हे, इसीसे मरेमें मिथ्याखसे ले अयोगी पर्यत १४ गुणस्थान, व गतिसे উ आहारक पयेत १४ मार्गणाके स्थान नहीं हें, न मेरेमें इंद्रियां हैं न मैं इंद्रिय-सुखका स्वामी हे | सुख या आनन्द चेतनाके समान मेरा शूकं विरोष गुण है। वह मेरी सत्तामें सदासे है। जब में स्वच्छ




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