श्रीमद राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ | Shreemad Rajendrasoori Smarak Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
69 MB
कुल पष्ठ :
985
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ्री राजन्द्रसूरि-धचनाझुत । ७
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दुनियां से कूच कर जाना पड़ता है । ऐसा जान कर जो घर्ममाग को अपना छेता हैँ, वह
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परभव में भी सुख प्राप्त कर लेता है ।
१७ घन, माल, कुटुम्ब-परिवारादि सव नाशवान और निजगुणघातक दै । इन
में रह कर जो प्राणी वड़ी सावधानी से अपने जीदन को धर्मझत्यों द्वारा सफछ बना लेता
है, उसीका मवसागर से वेड़ा पार हो जाता है । शेष प्राणी चौराशी छाख योनियों के
चकर में पड़कर, इधर-उधर লা करते रहते हूँ |अतएब शरीर जब तक सशक्त है और
कोई আঘা उपस्यित नहीं है, तभी तक आत्मकल्याण की साधना कर लेना चादिये।
अशक्ति के पंजे भें घिर जाने के दाद कुछ नहीं हो सकेगा, फिर वो यहां से कूच करने
का डंका बजने छगेगा और असहाय हो कर जाना पड़ेगा।
१८ मानवता में चार चांद लगानेवाला एक লিল হজ ই | मनुष्य चाहे जितना
विद्वान् हो, पेज्ञानिक और नीतिन्न दो; परन्तु जव तक उसमें विनयगुण नहीं होता तब
तक बह सब का प्रिय और आदरणीय नहीं वन सकता | विनयहीन मानव उदारता,
धीरता, प्रेम, दया और आचार व विवेकपूर्वक सुन्दर गुणों को नहीं पा सकता। इसी कारण
बह विनयह्ीन अपनी कार्यसाधना में हतादश ही रहता दे किसी भी कायं मे सप्त
लता नदी पा सकता | गायन करने के समय, मत्य करने के समय, अभ्यास कर्ते के समय,
चचौवराद् करने के समय, संग्राम करने के समय, दुश्मन का दमन करने के समय, भोजन
करने के समय और व्यवहार सम्बन्ध जोड़ने के समय, इन आठ स्थानों पर विनय
( लज्जा ) रखने से हामि होती है | अतः इन स्थानों को छोड़ कर अन्य स्थानों पर
विनयगुण को अपनानेवाला व्यक्ति स्वेत्र आदर ओर प्रेम सम्पादून कर सकता है ।
१९ जिस प्रकार मसत्तिकानिर्मिच कोंठी को-ज्यॉ-ज्यों धोई जाय त्यॉ-त्यों उसमें
गारा के सिवाय सारभूत दस्तु कृ नदीं मि सकती, उसी प्रकार जिस मानव में जन्म
से दी कुरंस्कार अपना घर कर बैठे हैँ उसको चाहे अकादूय युक्तियों के छारा समझाया
जाय; परन्तु वह सुसंस्कारी कभी नहीं हो सकता | अगर वह विशेषज्ञ होगा तो अधिक
बात से अपने कुसंस्कारों को दृढ़ करने छगेगा | इसीसे कटद्दा जाता है कि “ पड़या लक्षण
मिटे न सूओँ ! यह किवदन्ति सोलह आना सत्य है। कुसंस्कारी मानव समय आने पर
अपनी मह्िनताओं को उगले बिना नहीं रहता, ज्यॉ-ज्यों उतको समझाओ त्यॉ-त्यों वह
अधिक मकिनता का शिकार बनता जाता है । जिस मानव में जन्मसिद्ध सुसंस्कार पढ़े
इण वद दुर्जनो के मध्य ॐ छाख विपत्तियों में घिर जाने पर भी अपनी अच्छी
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