उपन्यास सिद्धान्त | Upanyas Siddhant

Upanyas Siddhant by श्री श्याम जोशी - Shri Shyam Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हम दैनिक जीवन मै देखते रहते ह श्रौर उन्हें उपन्यास मे पढ़ कर उनकी सत्यता पर संदेह करना हसारे लिये कठिन हो जाता दै । इतिहास में' केवल दृश्य-धटनाश्रों का द्वी वर्णन होता दहै; छिन्त उपन्यास मे पान्नों के भावों और बिचारों का मी चित्रण किया जा सकता है | इतिद्दासकार केवल इतना कद्द सकता है कि अ्रस्ुक व्यक्ति श्रमुक परिस्थितियों मे उलमः गया; डिन्‍्तु उपनस्यासकार इसके आगे यह मी जोड़ सकता है कि उस समय ठस व्यक्ति के हृदय में अमुक २ - प्रकार के साथों भौर विचारों का वअम्तहेन्द्र मचा | निष्कर्प यह निकला कि इतिहास और उपन्यास के बीच कफ्फना की विभाजक रेखा है, नहां वस्तु-सत्य सात्र होता है वह इतिद्दास है और जहां कल्पना मिक्षित सस्य दता दै वह उपन्यास है | दंतिहदास का सम्ब्ध केवक्ष ब्यक्त से ३ जव कि उपन्यास का श्रव्यक्त से भी |




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