मेरा स्पष्टीकरण | Mera Spashtikaran
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(३)
कहते है कि पुराने को क्यो प्रमाण माना जाय ° पर भाइयो, सत्य
सदा सत्य होता है, वह त्रिकालावाधित होता हैँ। वह पुराना होने
के कारण नही, किन्तु सत्य होने के कारण माना जाता है। अहिंसा
यदि घमं है, तो त्रिकाल में वह धर्म ही है, अधर्म कदापि नही।
आपने सुना होगा कि हमारे सभी तीर्थंकरों का उपदेश एक सरीखा
होता ह । * जानते ह इसका क्या रहस्य है ? धर्म अर्थात् प्राणि
সাঙ্গ को दुरवस्था ओर कमजोरी से हटाकर स्वस्पकी गोरे
जाना दो प्रकार का नही हौ सकता । उसका स्वरूप त्रिकालर्मे एक
ही प्रकार का होगा 1 श्री मद्राजचन्द्र ने कितने मामिक जब्दोभें
लिखा है कि--
“एक अज्ञानो फे करोड विकल्प होते हैं पर फरोड ज्ञानियों फा एफ
हो विकल्प होता हूँ ।”
अर्यात् अज्ञानी व्यक्ति अपने राग, देप, अहकार आदि फे
कारण जगत् में अनेक प्रकार की विपमताए उत्पन्न करता है,
संकडो विधि-निषेधो को घर्में का जामा पहिनाता है, पर करोड
भी सच्चे ज्ञानी एक ही वात सोचे । वे सोचतेगे कि ससार कं छन
विपय कषायाकुल प्राणियो को सन्मागे कंसे मिलते ? उनकी
१ “जे य सर्हया, जे य पड्प्पन्ना, जे य मागमिस्सा अरिहता भगवतो
स्वे ते एवमादक्छति एव भासति एव पत्नदेति एव परूदेति--सबव्वे पाणा
सस्ये भूया सव्वे जीवा सव्ये सत्ता न हृतव्वा न अज्जायेल्वा न परिपेतग्धा
न परियाघेयस्वा न उवदवेय्या \ एस धम्मे सुद्धे नितए सासए् 1
मर्यात् जितने अरहत हो चुके है तथा होंगे, ये सब यहाँ फहते है, बताते
हैं; प्रतिपादन फरते हैँ ओर घोषणा फरते हैँ कि फिसो प्राणी भूत सत्त्व
या जोव को न मारना चाहिये न पकडना चाहिये, और न फष्ट पहुचाना
चाहिये । यह् म'हूसाघमं शुद्ध है, नित्य है मौर शाश्वत हैं ।--आचा० 1
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