सूदन - रत्नावली | Soodan Ratnavali

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Book Image : सूदन - रत्नावली  - Soodan Ratnavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुजानसिंह का चरित्र मनुष्य मनुष्य की प्रशंसा बहुत कम करता है। यदि वह कभी मनप्य की प्रशंसा करने में प्रवृत्त भी होता है तों केवल मनुष्य के देवीः शो से प्रेरित हो कर । सनीपियों ने इन ग्रुणों के नाम अवस्था और काल भेद से अनेक रक़्खे हैं। मनुप्य स्वभावतः अन्य पार्थिव के सुख दुख से सुखी और दुखी होता हे; इसी भावना से प्र रित हो कर यदि बह किसी दुखी की धन से सहायता करता है तो उसे हम उदारता का नाम दे डालते हैं; किसी आततायी के विरुद्ध प्रयुक्त शक्ति को वीरता और पराक्रम का नाम दिया जाता है। दुःखी के दुःख से आद्रंवित्त हो कर उसको सान्वना और धैर्य देने को सौजन्य ओर दया के नाम से पुकारते हैं | तात्पर्य यह है कि एक भावना के ही अनेक रूपों का नाम अनेक गुणो की संख्या है।हाँ! तो मनुष्य अपने वर्गों की इस भावना के रूपों का अवलोकन कर ही उसकी ओर आकृष्ट होता है | कवि भी अपने आश्रयदाता की ओर इसीलिए, आकृष्ट होता है ओर उसके गुणों के वर्णन में अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग अपनी प्रतिभा से करता है । सूदन का आश्रयदाता सुजानसिंह भी उपयु क्त गुणों से भूपित है उसके ये गुण इतिहास में प्रसिद्ध हैं । किन्ठ सदन उसके पराक्रम, शौर्य रहि गुर्शा से हों अधिक प्रभावित हुए हैं। उृंदन ने अपने काव्य- सुजान-चरित्र में इन्हीं गुणं का विशेष वणन किया है | यदि यह कदां जाय क्र कवन नायक कं कवल इन्हां शुर्णा का बणन किया है तो अनुचित न होगा । मेरे इस कथन से यह भी तात्पर्य नहीं है कि उन्होंने आश्रयदाता में सौजन्य, उदारता और दया आदि गुणों को आने ही




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