गाँव का गोकुल | Gaanv Ka Gokul

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Gaanv Ka Gokul by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सब भूमि गोपाल की १९ सभीते की दृष्टि से या तो उसका वितरण हो या उसकी सामु- दायिक जोत हो । उस पर कोई अपना निजी अधिकार नहीं रख सकेगा । पंसे सरक्तित रखने का आज तक जमीन एक निरापद साधन धा । अब चह उस रूप में नहीं रह सकती | मालकियत बनाम लियाकृत साम्राज्यञाही या राजञाही को पीछे छोड़कर अब हम लौकयादी के रास्ते पर चल रहे हे । उसका अथे यद्‌ हू कि अब मालकियत की जगह लियाकत टेगी। माटक्रियत विरासत में मिलती है लेकिन लियाकत हरणएक को अपने प्रयत्न से प्राप्त करनी पढती ह। आज़ तक राजा का पुत्र राजा हुआ, दीवान का चेटा दीवान हआ, कोतवाट का ख्डव्न कोतवाट ओर चपरासी का लड़का चपरासी हआ। क्याकि रोगों की यट धारणा रही कि योग्यता भी रक्त के साथ विरासत म भिल्तीह्‌। ऐसी अन्याय फी परम्परया चलती आयी] योग्यता भी सानदान से निधौरित की जाती धी ओर अयोग्यता भी खानदान से ही निर्धारित होती थी । “यद्यपि ब्राह्मण हो भ्रष्ट, तथापि तीनों लोकों में शेए|--ऐसी भोली धारणा न्नाह्मणेतर्रों की भी थी: बल्कि वाल्पता थी कि शद्व संस्कृत उचारण कर ही नहीं सकते। ( उन्हें वेदाधिकार नहीं है. इसके यही माने हो सकते है, क्याकि वेदों का अध तो करन की जरूरत किसीको भी नहीं थी।! ) पितु अव ये सव कल्पना भ्रमपृण सिदध ले चुकी ह । अव आनु- वंयिक परंपरा के स्वामित्व की कल्पना का जीवन के ₹र क्षेत्र म से निराज्रण हो गया हूं। पहले देययुख का लड़का ही देशमुख हो सकता था. लेफ़िन अब कलेक्टर के लड़के को क्‍्लक का काम भी साकार करना पड़ता € आर चपरासी का लड़का उसके उपर फा एकम चा पलेक्टर वनक्र आता द्‌ । जज लोक्या अर्थात्‌




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