समाज और राज्य : भारतीय विचार | Samaj Aur Rajya : Bhartiya Vichar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भादकथन कोई भी ग्रन्थ किसी निश्चित परन्तु सीमित उद्देश्य को ले कर लिखा जाता है । यह ग्रन्थ भी इसी प्रकार से एक सीमित उद्देश्य को लेकर लिखा गया है । वह्‌ उद्देश्य है भारतीय समाज और राज्य-व्यवस्था के भ्रमुख अज़ों का सकारण विश्लेषण करना | इसकी आवश्यकता इसलिए उत्पन्न हुई कि वर्तमानकाल में भारतीय समाज और राज्य-व्यवस्था के मुलाधारों को समझ कर उनके आधार पर उस व्यवस्था का विश्लेषण करने की पद्धति बिल्कुल नहों है। इसके अतिरिक्त भारतीय सामाजिक विचारों की, ओर भारतीय समाण-व्यवस्था का वर्णान करनेवाले ग्रन्थों की मान्यताओ्रों को भी वर्तमान विद्वज्जगत्‌ द्वारा लगभग कोई महत्त्व नहीं दिया जाता, यद्यपि उन मान्यताग्रों को अस्वीकार कर समाज-व्यवस्था अथवा राज्य-व्यवस्था का अ्रव्ययन करना, विकृत चित्र ही प्रस्तुत करेगा (देखिये, आगे अ्रध्याय १ का अन्तिम पृष्ठ--श्री रज्जगस्वामी आयज्भर का उद्धरण) | इस कारण इस ग्रन्थ में भारतीय सामाजिक विचारकों की सान्यताओं को ध्यान में रखते हुए समाज और राज्य-व्यवस्था के कुछ ग्रद्धों तथा तत्सम्बन्धी विविध समस्याभ्रों पर विचार किया गया है । जेसा बताया गया, भारतीय समाज-रचना और राज्य-व्यवस्था के मूलाधारों तथा भारतीय सामाजिक विचारों की मान्यताञ्रों को मान कर सम्पूर्ण भारतीय जीवन-प्रणाली का चित्र वर्तमानकाल में लगभग प्रस्तुत नहीं हुआ है और इसलिए इस ग्रन्थ में स्पष्ट कौ गयी धारणाभ्रों मेँ मौलिक विचार अ्रवश्य प्रस्तुत करना पड़ा है । इसके अतिरिक्त निम्न विषयों का भी विवेचन लगभग प्रथम बार किया गया है--- क, त्रिवर्ग (धर्म, अथ, काम) से वर्राश्रम व्यवस्था का सम्बन्ध । ख. चित्त-शुद्धि के साधनों--दान, यज्ञ, तप श्रादि-का श्रथं श्रौर उनका विवेचन । , ग. सियो के स्थान का सकारण तथा सम्पूणं समाज-व्यवस्था के साथ एकरूप विवेचन । घ, भारतोय नैतिक धारणाश्रं की कल्पना । ड., भारतीय धमम-राज्य का अर्थ तथा उसमें और साम्प्रदायिक राज्य में ग्रन्तर । च. भारतीय व्यवस्था में राज्य को सौंपे गये कार्यों का विस्तृत विश्लेषण । ख, विधि तथा दण्ड सम्बन्धी भारतीय विचार ।




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