स्वामी रामतीर्थ | Swami Ramtirth

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Swami Ramtirth  by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भेरेणा का स्परूप. ४ है, आप की सर्च से एकता दोगई है। जब आप अपने जुकृते- सयात् से कफारीगर नहीं है, तव'दुमापिया, लिखना, और लेखक पक दो जाति है । तव सम्पूण भेद भाव का विनाश शोः जाता दै ঘহ ই पेर्णा का स्वरूप, भेर्या का रदस्य 1 स्ोग कदते दे, वह भ्राध्यारिमक् पुरुप है” 1 परन्तु जव चह स्वयं अपने को देवी संदेश से युक्त समझता दे तथ वह अभिनिवेश में (देवी प्रेरणा) म॑ नहीं होता | दूसरे उसे प्रेरणा म समझते दे। दूसरे लोग इन्द्र धनुप की ओर देखते हे शरोर रगौ की, खुन्दर उज्ज्वल रंगा की प्रशंसा करते हैं ।चे उन्दै (रंगा को) पसन्द करते दै, उनकी प्रशंसा फंस्ते दे 1 परन्तु जद्दां पर इन्द्रधनुप दिखाई पड़ता दे चद्रां तो जाइये'। परीक्षा कीजिये, सावधानी से- देखिये, और आप फो फोई भी इन्द्रघलुप न दिखाई देगा | आप को वहां पर इन्द्रधनुष न दिखाई देगा ।इन्द्रथनुप दूसरो की दृष्टियोँ में मौजूद ই। परन्तु दुसरे (इन्द्र धत्ञप के) स्थान के दृष्टि बिन्दु से, अथवा जिस स्थान पर दूसरे लोग इन्द्रघडुप देलत दे उस स्थान पर हम हुए मनुष्य फे दृष्टि चिन्दु से वहां पर फोई इ्द्रधदुष नहीं है । इसी प्रकार दूसरों के जु ता ए-ख्याल से एक व्याक्षि प्रेरणा म, महापुरुष, लेखक, विचास्शील, तस्ववेत्ता 'समका जाता दे | परन्तु स्वर्य अपने विचार चिन्दु से उस समय उसमे इस तरद का कोई प्रपजद' नहीं मोजूद होता कि, “मेँ लिख रदा हैँ” या में पेरणा में हैँ ” | कारीगर को अपनी कारीगरी की संर चढ़ना ही होगा। मकिणियों की भांति कार्रंगरों को अपने डंकत-प्रदार में अपने प्राण भर देने चाद्दिए | प्रेरणा का यही पूरा रहस्य दे। मकली आप के




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