सायर तरंगिणी | Sayar Tarangini

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Sayar Tarangini by जे. एम. कोठारी - J. M. Kothari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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/ ( ४ ) ध्रिलोकी नाथो तिलक सरीखो, श्राय उपन्यो महाराणी कूरदो ॥२५॥ दोय कल्ल तारक सरन समानो, अन धन्‌ लदमी घ्र भरसी खजानो, भरत चेत्र मे उद्योत करसी, संजम सेई ने शिवरमणी वरसी ॥२६॥ सलाह फरीने बोले छे जोसी, उत्तम सपना रो ये फल दोसी । राजा राणी सुन आनंद पाया, दान देईने घरे पहुँचाया ॥२७॥ श्रीफल सुपारी पानां का बीड़ा, बांटे सभा में करता बहु क्रीड़ा । जीमण की बेला भोजन कीना, लोंग सुपारी सुछण लीना ॥२८॥ नित नवला पहरे वस्ध आभूषण, गर्भ ग्रतिपाले टाले सब्र दूषण । पुम्य प्रभावे उपे शुम डोला, पूरे महाराजा करती रंग रोला | २६। ज्ञान प्रभावे गे आज्लोचे, विनो करीने अड्भ सफ्रोचे | माता दुख पामे करती विचारो, हाले न चाले गर्भ हमारो ||২০ । राजा राणीजी सुरता वेहू, जीवं जटालग संजम नही लेऊं, बिल बिल करती आंघूडा नाक्ञे, षम पुरकायो हप विषेशे । ३१। बांटे बधाई हुवो आजनंदो, दिन दिन ঘা क्रम दूज नो चन्दो, चेत सुदी ने आधी सी रातो, तेरस ने जनम्या श्री जगनाथो ॥३२॥ छपन कुंवारी मंगल मागर, चौसठ इन्द्र॒ भिल मेड पर ला । तीथं भेखली ने पाणी संगवे, मर भर कलसा ऊपर पघरावे ॥३३। इन्द्र सगलाई अनुकम्पा लावे, बालकवय प्रभूजी अमाता पावे, तिर देला ततखिण परचो दिखलावे, चरी




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