पत्रावली | Patravali

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Patravali by सुभाष चन्द्र बसु - Subhash Chandra Basu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चुकी, यह जानकर प्रसन्नता हुई | देश जाने पर ही वहाँ जाऊँगा। मिलने पर उन्हें मेरा सादर प्रणाम कहना | वड़ी दीदी बीमार हैं यह सुनकर चिन्ता हुई | अब वह कंसी हैं ? आपको लंगड़ा बुखार हुआ था यह जान- कर मै चिन्तित हृं । श्रव केसी हो ? वसुमती के आफिस में शंकराचार्य के समस्त स्तोत्र बहुत ही सस्ते मूल्य पर मिल जाते हैं। एक ही पुस्तक में सव स्तोत्र संकलित हैं, और मूल्य केवल वारह आने या एक रुपया है। यह सुविधा न छोड़ना। कंचि मामा से कहना एक पुस्तक खरीदकर ले आयें । वह पुस्तक आप अपने पास रख लें, और कटक आते समय साथ लेगआायें। माँ, मुझे आपसे कुछ कहना है । सम्भवतः आप जानती हों कि मांस-त्याग की मेरी प्रवल इच्छा है। किन्तु कोई कुछ कहे या इसका दूसरा अर्थ निकाले इसी कारण नहीं त्याग पा रहा हूँ । मैंने एक महीना पहले मछली के अतिरिक्त अन्य सभी मांस त्याग दिये थे, परन्तु दादा ने आज मेरी पत्तल में हठपूर्वेक मांस परोस दिया। क्या करता ? विवश होकर अनिच्छापूर्वक खाना पड़ा । मैं निरासिषभोजी बचना चाहता हूँ। कारण यह है कि हमारे चास्त्रकारो ने लिखा है--श्रहिसा परमो धमः | केवल झ्ञास्त्रकारों ने ही नहीं भ्रपितु स्वयं ईश्वर ने भी कहा है--हमें क्या अधिकार है कि हम ईश्वर की सृष्टि को नष्ट कर दें ? इससे क्‍या घोर पाप नहीं होता ? जो यह कहते हैं कि मछली न खाने से नेत्रों की दृष्टि क्षीण हो जाती है वह्‌ भूल करते हैं। हमारे श्ञास्त्रकार इतने मू्खे नहीं थे कि लोगों की दृष्टि क्षीण करने के उद्देश्य से ही मछली खाने का निषेध करते । आपका इस विषय में क्या विचार है ? आपके ्रादे के विना हमारी कृ भी केरने कौ इच्छा नहीं टोती 1 हम सव कुशल हँ । श्राप सबको मेरा प्रणाम । आपका सेवक सुभाष




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