नागरी प्रचारिणी पत्रिका [ वर्ष 56 ] [अंक 2 ] | Nagriparcharni Patrika [Year 56] [Ank 2]

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Nagriparcharni Patrika [Year 56] [Ank 2] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन भारतीय पंचांग और राम-चरित समयावली १०६ संवत्सर-काल पड़ता था । दूसरे शब्दों में उनकी उक्ति का भाव था--इस दसवें महीने ( जो संवत्सर-काल पर पूरा होगा ) के ऊपर में न जीऊँगी । सफल हनूमान्‌ पनी मंडली समेत भागाभाग किष्किधा लौरे श्रोर राम ने विजय मुहूतं एवं उराराफाद्गुनी नक्षत्र म, सीता-उद्धार के निमित्त स-बानरसेना, कूच कर दिया ।*२ सीता की मासात्‌ उध्वं न जीवेऽद्म्‌' बाली प्रतिज्ञा जानकर उनके लिये लाजिमी था कि वे श्रविलंब कूच कर दें और मासवाली अवधि की पू््ति के पहले लंका पहुँच जायेँ । कूच करते हुए उन्होने कहा भी क्रि सीता इस अमियान का सम्ताचार पाकर आश्वस्त हो जायेगी ।४३ राप्र जब लंका पहुँच गए तब रावण द्वारा सीता-बध की आशंका भी समाप्त हो गईं, क्योकि उस समय युद्र-काल में ऐसा वध युद्ध-धमे के विरुद्ध था । उक्त उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र अगहन बदी ९५, १० के लगभग पड़ता है। अगली अथोन आम्रहायणी पूर्णिमा को--कूच के लगभग बीस दिन पर-लंका के सुवेल पव॑त पर राप्त का मोरचा जप्ता था ।** उन दिनों इस पूर्णिमा से संवत्सर चलता, यद्दी सोता कथित संयत्तर काल है । पूस लगते युद्ध आरंभ हुआ । लगभग पंतालीस दिन युद्ध चलने पर, भाघ॑ कृष्ण १३ को मेघनाद निहत हुआ । दूसरे दिन, चतुदेशी को राबण ने रणक्षेत्र में उतरना निश्चित किया । अ्रमा को वह रंगभूमि में उतरा* ओर तीन दिन के द्वेर्थ युद्ध में माघ सुदी २, ३ को राम के ह्वाथ मारा गया। मध्यप्रदेश में अब तक रावणवंशी गोंड माघ मे रावण को पिंड देते है । यह वनवाषवाले चौदहवे वपं का द्सवाँ महीना था। च्रथात्‌, चौदह वभ पूरे होने का दो मद्दीने ओर थे । राबण के उत्तार कमे के उपरांत राम ने विभीषण को लंका का राज्य दिया । इसके उपरांत विभीषण ने उनकी पहुनई की | तब वे घीता तथा बानरदल समेत ক্ষিতিক্কঘা लौटे जहाँ बानरों ने उनकी पहुनई की । वद्ाँ से सुप्रीव, हनूमान्‌, अ्ंगद आदि प्रमुश् बानो तथा उनके दल समेत राम श्रयोध्या के लिये प्रस्थित हुए । यह्‌ ४२-- युद्ध ० ४।३, ६ ४३-युद्ध० ४।५ ४४ - सुद्र» ३८।२० ४५-- युद्ध ° ६१।६५.




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