समालोचक | Samalochak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। व सतमालोचक । ९९ -
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उठा सकते थे 1 । है हु
दोहा--शुरू स्तुति सम्मत धरम फंख पाइ यविनहिं कलेख |
- ट चस सव सङ्कर खै गालव नहुसख नरेख ।
इस के सिवाय यह वात चिनचासनेकी है कि जबतक कोई किसी
का सविस्तार या संद्तेप त्तान्त आद्योापान्त नदीं पढ़ता ततबतक
उसके पढ़ने खे चया-फल छोता है? उख का चरित पूरा केस्ते
जान सकता है ? . दम मानते द कि राबिन्सज ऋसो का इतिहास
भनोरसश्षनकर है परनन््लु इस भापालखार संञह में ऐसा कुढहु। लिस्ता
गया हे कि पढ्नेवाले के चित्त पर उस का अभाव बहुत द्धी कम
दोगा । ` दख मे राविन्सन की इच्छा, पिता का उपदेश, उस फी
मसाला का पति के चाकृ्यों पर समर्थेन, इत्यादि रुपछ रीति से वरेन
कियाणया है परन्तु माता पिता की आज्ञा न सानने सतत ज्यों २ डुश्ख
उसने पाये हैं उसका कुछ भी चयान नहीं दियागया। संअहकच्षों
जे अन्त में झ्पनी ओर से इतना लिख दिया है कि-“आज्ञा न
गानने के कारण जो कछ ष्यन्ति केलने पड़ीं ले अकणथनीय
चच 1” -आपत्ति अकथनीय दे वा असद्य थ ? रेखे छशधुरे छन्तल्त
सख विद्यार्थी को कया लास होगा ? ।
चेश्शनगर का व्योपारी--इश्सत नक्े पढ़ने सख जन खम्थद्ए्य के
विद्यार्थियों को आप्तसिक कछ होगा ।- क्योकि इसमे कथा के छत
खे प्ट्क जली की निन्दे, दुसरे दो च्ियेद च्छ ुरुप के वेप से
चकालंत करना भसासत्तीय रीति नीति और चत्तेसान शित्ता के विरूद्ध
दे! अमी थोड़े दिल की चात्त दे एक यूरेपियन लेंडी को जो चेरि-
হত पास करके चस्चई और घयाद की दाईकोई में अपना
व्यवस्ताय (दकालत) करना चाहती थी -उस्त को याद्वा नहीं दो
गयी 1 जव स्वराश्चीन्त्तए्थिय स्विक्तित खमन मओ सी स्थियों की चका-
सख दूषित च्वमस्की ययी तच क्न्य सर्म ই, আাযেজ च्छी हिन्दुः नासे
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