स्वामी रामतीर्थ | Swami Ramtirth

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
4 MB
                  कुल पष्ठ :  
160
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनुष्य का आात्त्व- ७
हैं। इससे हम देखते हैं [कि पौधों से तुम्हारा भाइयों का जैसा
सम्बन्ध है | तुम्हारी साँस उनमे जाती है और उनकी साँस
तुम में पेठती है तुम पौधों में संस छोड़ते हो और पौधे
, तुम में साँस श्रविष्ट करते हैं। तुम बागों और पौधों से भी
अभिन्न हो । 9
श्रव हम दूसरे पटल से इसे विचरेगे । जो आसीन
ज्ुम सास दारा भीतर खींचते हो और जो कार्चन डायोफ्साइड
में बदल जाता है, वह पौधी हारा छोड़ा हुआ था, बही
आपसीजन तुम्दारे भाइयों के - फेफड़ों मे. जाता है | जो तब
तुम्हारे: शरीर में था वह श्रव तुम्हारे भाई के शरीर में है ।
त॒म सवके सथ वही दषा सस लेते हो। ज़रा भान (महसूस)
तो करों कि तुम सब के खव वदी दवा संख लेते दो
छुन्हांरे साँस मे॑ तुम्दारे सब शरीर पक हैं । जैसे
चुम उसी एफ दी प्रथिवी पर रहते हो वैस दी वदी खय,
यही चन्द्रमा, वद्दी वायुमेडल हुम्दारे चहूँ ओर है। तुम फल
शाक-भाजी या मांस खाते हो। उनके खाने से तुम्हारे शरीर फी
रचना होती है। मल सूत्र के रूप में वे बाहर निकर जाते
- हैं और अपने इस त्यांगे हुए: रूप में वे उद्धिज्जों और फलों
में प्रवेश करेंगे। वे उन रूपों में पुनः प्रगढ होते हैं। वही
पदार्थ, जो तुम्हारे शरयरों से बाहर निकला था, जब शाक-
. भाजियाँ और फलों के रूप में पुनः प्रगट होता है, तव फिर `
तुम्दारे भाइयों द्वारा अहण किया जाता है, दूसरे लोगों के
शरीसों में प्रवेश करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जो
पदाथ एक वार तुम्दारा था वदी तुरन्त दुसरो का दो जाता
ह । यदि टम सदम दशन यत्न से अपनी त्वचा की शरोर देखे
तो दम अपने शरीरों से छोटे जानदार परमाणु वाहर निक-
खते, वहुत ही छोटे जीते ज़रें अपनी वेही से बाहर आते
					
					
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