आदर्श भक्त | Adarsh Bhakt
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजा रन्तिदेव ६
जल भी पौनेको नहीं मिला | भूख-प्याससे पीड़ित बढहीन राजाका
शरीर कॉपने छगा | अन्तम उनचासवे दिन प्रातःकाट राजाको
धी, खीर, हलवा और जरू मिछा ! अड्ताठीस दिनके लगातार
अनशनसे राजा परिवारसहित बड़े ही दुव॑ हो गये घे ।
सवके शरीर कोप रहै थे। रोटीकी कीमत भूखा मनुष्य ही
जानता है | जिम्तके सामने मेंबे-मिष्टान्रेकि ढेर आगे-से-आगे छगे
रहते हैं उसे गरीत्रोंके भूखे पेटकी ज्यालाका क्या पता !!
रन्तिदेव भोजन करना हौ चाहते ये कि एक ब्राह्मण
अतिषि आ गया । करोड़ रुपयोमेसे नामके लिये छाख रुपये दान
करना बड़ा सहज हैं परन्तु भूखे पेठ्का अन्न दान करना बड़ा
कठिन कार्य है | पर सर्वत्र हरिको व्याप्त देखनेवाले भक्त रन्ति-
देवने वह अन्न आदरसे श्रद्धापूवक ब्राह्मगरूप अतिथिनारायणको
बाँठ दिया | ब्राह्मण भोजन करके तृप्त होकर चछा गया |
उसके वाद वचा हा अनन राजा परिवारको बोधकर खाना
ही चाहते ये कि एक शुद्र अतिथिने पदार्पण নিয়া | হালান
भगवान् श्रीहरिका स्मरण करते हुए बचा हुआ अन्न उस ददि
नारायणको मेंट कर दिया। इतनेमें ही कई कुत्तोकी साथ लिये एक
और मनुष्य अतिथि होकर वहाँ आया ओर कहने लगा-राजन |
मेरे ये कुत्ते और मैं भूखा हूँ, भोजन दीजिये ।!
हरिभक्त राजाने उसका भी सत्कार किया और आदरपूर्वक
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