हिन्दी उपन्यास में नारी चित्रण | Hindi Upnyash Me Nari Chitran

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Hindi Upnyash Me Nari Chitran by बिन्दु अग्रवाल - Bindu Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपन्यास का क्रम-विकास १७ विक आकर्षण पर ही आपने अपना प्रसिद्ध उपन्यास शेखर : एकं जीवनी! (१९४४) लिखा है। पुरुष का अहं और उसके प्रति नारी के तन-मन-समपेण का ही रूप इनके उपन्यासो मे अधिक मिक्ता दहै । इसके अतिरिक्त इस उपन्यास में आपने शिशु-सानस' के विश्लेषण, उसकी मानसिक प्रक्रिया एवं उसके अचेतन मन का विशद उद्घाटन किया है। | | इसके विपरीत समाजवादी प्रवृत्ति के अनुयायी यशपाल, उपेन्द्रगाथ अर्क , रांगेय राघव, अंचल , मगवतीचरण वर्मा और नागार्जुन ने प्रेमचन्द की ` वस्तुनिष्ठ यथाथेवादी परम्परा को आगे बढ़ाने की चेष्टा की है। यशपाल ने समाज की जर्जर मान्यताओं के खोखलेपन को उद्घाठित किया है' और उसमें माक्से के सामाजिक-राजनैतिक सिद्धान्त आरोपित किए हैं। अपने सिद्धान्त के लिए यशपाल कहीं-कहीं कथावस्तु की यथार्थता का ध्यान भी छोड़ देते हैं। राजनैतिक सिद्धान्त कै साथ-साथ इनके उपन्यासो मे रोमांस का भी योग रहता है जिससे दोनों के ही चित्रण में यशपाल को केवल आंशिक सफलता ही मिली है। उनके राजनैतिक सिद्धान्त कथानक पर आरोपित प्रतीत होते हैं। फलस्वरूप नारी के मन की सारी समस्या नित्तान्त स्थूछ सैक्स की समस्या के रूप में संकीर्ण बन गई है।' पार्टी कामरेड , दादा कामरेड', देशद्रोही और “मनुष्य के रूप' इस লাল के प्रमाण हैं। - उपेन्द्रनाथ अदक' के प्रथम उपन्यास सितारों के खेल मे रोमानी वातचरण था किन्तु गिस्ती दीवार में नायक चेतन निम्न-मध्य-वगं के जीवन का प्रतीक है ! इस उपन्यास मे अदकः ने यह्‌ सिद्ध करते की चेष्टा की है कि व्यक्ति की जीवनी-शक्ति इतनी प्रवछ होती है कि वह बड़े से बड़े संकट के सामने भी हार नहीं मानती । | अंचल्' और रोगेय राघव की सामाजिक चेतना में रोमान्टिक प्रवृत्ति पाई जाती है । नागार्जुन प्रेमचन्द की परम्परा के सच्चे अर्थं मे यथार्थवादी केखक ই। “লিলা की चाची' में प्रेमचन्द के वाद पहली वार गाँव के सच्चे जीवन के चित्र दिये गये हैँ जिनका चलकर आंचकिक उपन्यासो मे विकास हुआ! | मनोवैज्ञानिक और सामाजिक उपन्यासों के अतिरिक्त इस काल में कुछ उत्कृष्ट उपन्यास भी लिखे गये। डा७ हजारीप्रसाद द्विवेदी लिखित बाणभट्ट की ९ (१९४६) हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। इसमें ऐंतिहासिकता पैर औपन्यासिकता दोनों का सफल निर्वाह हुआ है । तत्काछीन परिस्थितियों को सफलता ” पुनरुज्जीवित करने के लिए यह रचना वेजोड़ है। इसी प्रकार वुन्दावनलाल वर्मा उपन्यास झाँसी की राती' भी सफल ऐतिहासिक रचना है। इसकी कथावस्तु लेखक दीर्घ परिश्रम और अच्वेपण से प्राप्त हुई है। इस' काल में लिखा गया इनका दूसरा उपन्यास 'मृगनयनी' भी उत्क्ृष्ठ कृति है। रामरतन भटनागर की , शिवदार्नासह्‌ चोहान : हिन्दी साहित्य के अस्सी वर्षा (पृष्ठ १६६)




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