बड़े साहब | Bade Sahab

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Bade Sahab by सीताराम जैन - Seetaram Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झफसर 15 # १ पुनन्दा द्वाए्‌ ्राए। घी ने सड़ होकर उन्हें भूठो> ही सही; सम्मान दिया ! मक्सेनाजी 'के बैठ जाने पर सभी बंठ गए ! सबसेनाजी ने एह-एक कर्मचारी की शोर मुस्करा कर देवां 1 फिर उन्होंने कहा; “मैं जामता हूं, कि भ्राष लोग जो मुझे विदाई पार्टो दे रहे हैं, उससे भाष खुश नहीं हैं । भाप खुश केवल इस बात से हैं कि मेरा यहां से ट्रास्फर हो रहा है । फिर भी जाते हुए ध्यक्ति को विदाई पार्टी तो मिल्ननी ही चाहिए। মানি मैं प्राप लोगों के साथ इतने दिन रहा हु । फिर मैं प्रमोशन प्राकर जा रहा हूं । झापको इसी बात से खुश होना चाहिए। किन्तु भाषि मभि नाराज हैं तो केवल यही स्षोच कर कि भापसे बार-बार जवाब तलब करके श्र प्रापको यार-बार चेतावनियां देकर मैंने प्रापका रेकाई खराब किया है। किन्तु याद रखिए, कभी कोई भ्फसर भपने स्टॉफ का दुश्मन नहीं होता है। उसे कर्मचारियों का रेकादं पौर उनकी सी.प्रार, ख़राब करने में मजा नहीं प्राता है। न इसमें उसका कोई व्यक्तिगत लाभ ही है। मैंने जो भी कुछ कार्यवाही की है, वह मात्र भाष लोगो की प्रादतें शुधारने के लिए की है । केवल इसलिए नही कि प्रापका रैकार्ड खराब क्रिया जाए ) मैंने न तो किसी को सस्पेन्ड किया है, भौर न ही किसी का स्थानान्तरण किया है) स्पानान्तरणों के पक्ष में न तो कभी मैं रहा हैं भौर न ही कभी रहूगा । इससे एक भोर तो कर्मचारी फो परेशानी होती है, दूसरी भोर राजकीय कोप पर अनावश्यक भार पड़ता है | फिर द्वाम्फर समस्या का समाधाय भी नहीं है। इससे बुराई बढ़ती है, घटती नही है। काम असम्तोपजनक होने पर ट्रास्फर किया जाए तो कर्म घारी निराशा व उत्साह भंग हो जाने के कारण श्रागे जाकर भी काम ठीक तरह नही करेगा । भ्रतः उचित यही है फि कर्मचारी को हर स्थिति में उसी स्थान पर रख कर उसकी आदतों में सुधार क्रिया जाए। उसके हिल में अपने काय के प्रति निष्ठा व कतेव्यपरायणता उत्पन्न की जाए ५“ हि सुरेश सोच रह थे।, फि पहले तो साहय ने लोगों का रेका सदाम कर दिया झौर भय मीदे-मीठे बोल रहे हैं । बह मत दी मत उतवः




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