राजनीतिक विचारधाराएँ समाजवाद से सर्वोदय तक | Rajnitik Vichardharayein Samajwad Se Sarvoday Tak
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
405
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गमाजवाद 3
हेमी टोपी बने या है. जिगशी भाशति बहुत भधियी पहने जाने के ब्रारण बिगष्ट
चुकी है
समाजवाद या सम्बन्ध किसी एड राज्य या महाद्वीप से नहीं है। प्रारम्म से
प्रदेश हो यूरोप में इसका प्रादुर्भाय हम्मा लेविल भव यह विश्वस्यापी विचारधारा
यन गया है। द्वितीय विश्य धृव बे उपरास्त एशिया प्रौर धष्रीया नै देश जैसे-जैसे
स्वाघीत हुए. लगभग सभी से प्पनी प्रौपनिगेशिता प्रये ध्ययस्था में सुधार करने
हेतु समायवाद বা धाश्रय लिया । फ्वसवरूप एशियाई समाजवाद, भ्र्तीयीं समाजवाद,
चौनो गमाजवाद, भारतीय समाजवाद, प्रश्व समाजवाद गादि वर्ई स्थानोय या
हो भ्ौय समाजवादी स्वरुप हमारे सामने धाये। নেম নু মী সনালালিঞ বা
हैं, बहुत गे राज्यों में गैनिक तानाशाही है, लेयिन संशी रम॑यं को समाजवादी पे
हैं । इग परित्यिति ने समाजवाद हे प्रति प्रम मे धौर भी वृद्धि गी है ।
भारतोय समाजवाद वा विवेघन भी प्रासमान नहीं हैं। भारत ঘা बौनगा
व्यक्ति या राजनीति देव समाजवादी है तथा टिस प्रशार থা শামাসঘাহী 1, यह
बताता प्रमम्भव हैं। भारत के गई राजनीतिर देतों ने रमाजवाद व पपन कायं
श्रम का मुख्य प्राधार माना है। यहाँ तर कि भारतोपष जनसंध ने भो एक प्रशार
मे गमाजवादी कार्यम स्यीनार किया है। हिस्तु इन सभी दसों में सदस्य बुछ
बड़ -य्ड पूंजीपति भो है। बढेन्बड़ उद्योगपति जो प्राथित्त विषमता शोपरश
बाजावाजारो प्रादि में घोड़ा बहुत योगदान देते हैं व भी स्वय वो समाजवादी
कहते हैं । यहाँ वा भूतपूर्व मरेश वर्ग भी स्वयं वो प्रगतिशीस प्रदर्शित बरने थे
लिए समाजवादी प्रावरणा परनन में कोई सोच नहीं बरता । इन परित्यितियों
के संदर्भ में मारत में समाजवाद व्यावहारिक বাহঙ্গন ন হ্বীর দ্য লাহাঘা
राजनीतिक फँशन बन गया है । एक साधारण नागरिक यह समभने में प्रगम्य রি
देश में कौन प्रगतिशील है, वीन' समाजवादी है। इस्रता तात्यये यही हुपा कि
समाजवाद वा प्र्थ सुनिश्चित नहीं है। सम्भवतः भॉसलेड (0, ১, তি, 01০5220)
के बिचार सही प्रद्ीत होते हैं कि “गमाजवाद वा न धो कोई निश्चित प्र हुप्रा है
पौर न होगा भी ।/ 6 िन््तु फिर भो यह स्वग्राह्य विचारधारा है।
परिभाषा--
उपरोक्त परिस्थितियों एवं कारण से यह तो स्पष्ट है दि समाजवाद को
कोई निश्चित या सर्व-सम्मत व्याद्या की जा सवती जो सम्पूर्णो समाजवादी चिन्तन
का प्रतितिधित्त बर संके। लेजिन इसके साथ यह बात भी है कि समाजवाद के
$. उपरोक्त, पृ« 34.
6. (70॥274, ९, & 1 5 286 28016 01 5001315585৪ 9 10
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