हिंदी उपन्यास: विविध आयाम | Hindi Upanyas Vividh Ayam

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Hindi Upanyas Vividh Ayam by सूर्यनारायण रणसुभे - Suryanarayan Ransubhe

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৫৭ प्रेमचन्द से मुक्तियोध : एक औपन्यासिक यात्रा है और ससुर के पैसों से वारात का टीमटाम भरा नाटक खड़ा करता है। विवाह के याद भी पत्नी को प्रेम से जीतने के स्थान पर झूठमूठ के राव से वण में करना चाहता है | चुंगी दफ्तर का मामूली क्‍लक होते एमी अफसर की दान दिखाता है'। उसे निर्वन रहकर जीना मरने से बदतर प्रतीत होता है । बवैमवलालसा के सामने सात्विक जीवन का भाद उसे युद्राता नही है । इसीलिए उसे रिश्वत लेने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होता। वह अपने नैतिक मन को समझाने के छिए अपनी रिद्वत को दस्तूरी कहता है और बीद्धिकीकरण (ऐ४४०7०॥1६७५४०॥) का सहारा लेकर कहता है कि बनियों से रुपया ऐंठने के छिए अबलछ चाहिए। वह रिण्वत के पक्ष मे वेतन की कमी का नकं मी पेदा करता ह । उसका यह तर्क दिल की सच्चाई से उद्‌मूत माना जा सक्ता था, अगर उसमे मतिरिक्त माप्रा मं दिखाई देने वाटी प्रद्शना-प्रियता न होती । वस्तुतः उसके चरित्र की नीव में वैमचलाखसा (নিভীনগা) द्वी है। घनलोलुपता के कारण ही वह क्रांतिकारियों के विरोध में बयान देने में उद्यत हो जाता है। विल्‍ासबृत्ति ने ही उसकी विवेकथक्ति को कुंठित ঘলা रखा है । देवीदीन और जालपा के प्रन पुन किए गये प्रयत्नों के कारण ही बगुनाहा का खून फरने में सहायता देने से दक पाता है। इस प्रसंग में बह पुलिस की सख्तियों का उल्लेख करता है, पर एंसी किसी सख्ती का वर्णन उपन्यास में कहीं नहीं है । मीदता के कारण ही वह अपने सत्संकल्पों पर दृढ़ नहीं रह पाता । इस प्रकार आत्मकेन्द्रित 'रमा की स्वाथंपरता ने उसे जहाँ राक्षस-चना डाला है, वहाँ कायरता के कारण वह पशु से मी गया-वीता वन गया है। निःस्वार्थ देवीदीन और साहसपुण जालपा के कट्रास्ट मे उसको स्वाथ और भीरुता की वत्तियाँ उमर कर सामने आई .# रमानाथ का सुख के लिए आत्मा बेचने वाला' भके ही कहा गया हो, पर उसमें आत्मा अवश्य हैं। वह पत्नी के गहने चुराने पर 'ग्लानि का अनमभव करता हैं। फेडकरा मे दान का कंवछ छेने पर उसकी आत्ममर्यादा को ठेस पहुँचती है भौरझता के कारण-संकल्पों पर दृढ़ न रह सकने की दुर्वंछता पर उसे बुरा महसूस होता हैं । उपन्यास के अन्त में डूबते हुए को बचाने के छिए साहस न कर सकने पर लज्जा का अनुमव होता है। उसकी यह घमिन्दगी उसके व्यक्तित्व के सत्पक्ष की আনন हू । वह पूरी सरह से दिल का बुरा आदमी नहीं है । बह कमजोर स्वमाव 'का यवज्य हू। इसलिए जीहरा ने रमानाथ के छिए कहा कि उसके लिए -मरहम की जरूरत है, जंजरों की नहीं ।'* उसने स्वयं अपनी दुर्बलता पर दःखान भव करते हुए कानरतापूवक जालपा से कहा दे किनृम मुझे ऊंचाई पर मत चढ़ाओ, क्योकि मृक्षम इतनी शक्ति नहीं है ।'' स्पप्टत: ही वह रीढ्हीन व्यक्ति रमानाथ और जाहूपा का सम्बन्ध विदवास का सम्बन्ध नहीं है। जाझूपा के अतिरिक्त रमानाथ का জুতা से भी सम्बन्ध हुआ । जोहरा रमानाथ को विवेक-




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