भागवत दर्शन खण्ड ७२ | Bhagwat Darshan [ Khand - 72 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१५० - २०० । इसी प्रकार बंगाल, ग्रासाम, राजस्थान भादि से
भक्तगण पधारे थे | फूस का एक बड़ा भारी पंडाल बनाया गया
था, जिसमें ८-१० हजार दर्शनार्थो ` वेठ सके । उसमे भी प्रातः-
फाल से रात्रि के एक दो बजे तक कार्यक्रम चलते रहते थे। देश
भर के प्रायः सभी बड़े-बड़े महात्मा उसमें पघारे। भिन्न-भिन्न
विषयों के प्रायः २२ । २४ सम्मेलन हुए | उस दृश्य को तो जिसने
देखा होगा वही उसका भनुमान लगा सकता है। १०८ पाठकों
द्वारा नौ दिन तक रामचरित मानस्त का नवाहे, १०८ पंडितों द्वारा
१०८ श्रीमस्भागवत के सप्ताह, १०८ व्यासों द्वारा १०८से भी
बहुत श्रधिक “भागवतचरित के सप्ताह, गोपालयज्ञ भादि भनेकों
बाय क्रम हुए । लगभग दो महीनों तकं मथुरा के श्री गगेजी
चतुर्वेदो द्वारा “भागवतचरित” के द्वारा' भ्रीकृष्णलीला हुई। उस
भ्रानन्द का वर्णन लेखनी के बाहर की बात है ।
उम विशाल पण्डाल के सम्मुख 'ही मेरी कच्ची मिट्टी की
- बनी कुटिया थी। उसके चारों झोर फूँस की टटिभ्राओ्रों का बड़ा
वाड़ा था, चारों कोनों पर चार गोल फूस को क्ुटियायें थी।
बठने को बड़ा भारी छप्पर का उसारा था,वह सदा गोवर से लीप
पोतकर स्वच्छ रखो जाती थी । उसी में में रहता था। भीड़ का
कोई ठिकाना ही नहीं था। हजारों लाखों नर-नारियों 'की भीड़
बनी रहती। ल `
पुलिनवास मेना समाप्त हो गया । चेत्र मँ-श्राविण मादौ में
यमुना जी कौ वाद् श्राई पुरा गोलोक स्थान राधारानी तक जल-
मय ही गया । जिधर देखो उघर जल, कहीं प्रता ही नहीं कहाँ
नेपानी कृञ्च थी, कहां आंध्र वाली कुछ, कहाँ आसाम त्तथा
वद्कान कौ कुञ्ञ । सच स्यान जलमय । हमारी कुटिया का नाम
नियानं नहीं रहा ) यद है भव्यन्त संक्षेप में गोलोक का परिचय ।
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