चतुर्भुजदास | Chaturbhujdas

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Chaturbhujdas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री चतुर्भजदास 42५- { जीवन-श्चक्षी ) जीवन का लक्ष्य-- छीज्ञा - नाव्वधारी दु युतकर्मा परमात्माकी रेगस्थटी पर जीच- परम्परा सें क्रमश. क्षदतरित्त विशिष्ट सानव, उदात्त गुणों छो समष्टिवारा वह पात्र, है, जो- स्वकीय मेजुल क्षमिनय से सूत्रधार, पात्र छौर दर्शकों फो प्लानन्दित करता है, शयच ' रसो सः ' क हुद्येक संवेध परमानन्द- सचित्‌ में मप्त रहा करता है | साठलिक, रक्षिक, संस्कारोद्‌भूत पद्धति से समधिगत सास्मुख्य, शमिनय-कौशल एव क्रिया की चद्रूपता के न केघरू प्रदर्शन से क्षपितु जीवन में पनवद्य चरित्र-चित्रण से भी परितः प्रमोद का भमिवर्षण करना ही मानव-छ्ीवन का चरम लक्ष्य होना चाहिए | पापण्डात्मक सर्व-मनन्‍्यास की ठपछी पीट कर स्व ' छी सीमित कलेवर-कोठरी मे एकाडी क्षात्मानन्द का घूंद गटक लेना भले ही पुरुषार्थ हो सझृता हो १ पर वह परम पुरुषार्थ तो नहीं है, पाशविक मनोवृत्ति है, जहा “स्वः ही सष कुछ है| जगद की काल्‍्पनिक नह्चरता की विसीपिका में * यछब्ध च्य ? फी दृष्टि से जीचन के छोर में यस्किब्ित्‌ वांध कर झच्यु के पंजे से दूर भागने का प्रयत्न लम्तृत पुत्रों का निर्विशेष * पछायनयाद * है। इस पलायन सें न ठो उसे कही विज्ञाम सिल सकता है न खात्म-सन्तुष्टि ही | कतिपय कठोर सिद्धान्तचादी” शासख्रीय इष्टिक्ोण में ८ पुरुपस्य धयः ‡ क्षौर ' परमश्चासौ पुरुषाधे ? इस विग्रह-पट मे * परम पुरुषां ° शब्द्‌ ङो पेट कर समाधिम्य फर देते हैं, पर शद्धादतवादी “ परमश्चासौ पुरुष: ? कौर * परमपुरुपस्य + स्थ॑ः ' = परमपुरुषार्थ: के লনা में ' स्व * कौर ' पर ' फी क्नुपम झाकी करता ह-- जो विज्ञान की दुलिया में नया दृष्टिकोण होता है | ' सख्ण्ड-भट्दत-ज्ञान ? की छपेक्षा ‹ भख ण्ड-श्ुद्ध-षदेत ` षा शान दी उसका घोष होता है। ' लात्मैयेदं' के प्रथम ' यद्वेद ' को वशिष्टप देकर वह मद्दानुभाव जगत के जीवन को सरस घनाता हे | स्वर




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