मानवधर्मसंहिता | Manav Dharm Sanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूचीपत्, ११ 3५५०५ ९ १५ ०७०७००७, ५७ ६०७ ০ ५ ५ मम १ ० ^^ = + খান ^ ६--चिकित्साविधा-वेबकेऊप्षण-पीभारकीहिफाज- त«भजीणे-कोपह द्धि-खुनीबवासीर वगेरारोगके मिटानेकाउपाव,श्लौकों रक्तविकारशांत होकर गर्भस्थितिहानेकी चिकित्सा-औरतकों-और- पिर्देकों किसतरह शरीरकी रक्षा करना-सपेके काटनेपर आरापहोनेकी चिकित्सा, ३०६-३३० ( तरंगद्सरेकाबयान,) !.-स्व॒रो दपज्ञान, । ११३१-३४१ /“योगशाखत्रका वर्नन, ५ ,-मूये -ओर-चदनादीचसतेवरत -क्याक्याङरना == +, म नर्वङी पहिषान-पाणावाम, 7 २--अष्टांगनिपित्त, ३१४१-१९ १ ४ मैंगफुरकनेका फछ !! পাক্কা কল १ # “धरविज्ञन-मनुप्य पश्ु-ओर पश्तीकीबोली सेंशभा शुभ... -जर्मीनकंपनेका फल, १ ४“ दे श-नगर- आर ग्रापोपरजब आफदआनेवाली } हों-क्याक्या बनावबन, 1 »--अकरक्चपेधुप्रकेतुका उदय-उस्कापात-भर- वारोकाखिरना, 2 ११ शरीरे तिण मपे-ओंर लहसनका फ ५) ॥“हयपाँवेकी रेखाका फल, ११ २... शकुनशास्र, १९२-२९६ ३.कालब्ञान, ~ न ~ ०» «०» ««» ““रैरै६०४०२े




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