नई चेतना की दिशा | Nai Chetana Ki Disha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nai Chetana Ki Disha by राजेश्वर प्रसाद कौशिक - Rajeshvar Prasad Kaushik

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजेश्वर प्रसाद कौशिक - Rajeshvar Prasad Kaushik

Add Infomation AboutRajeshvar Prasad Kaushik

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
12 / नह चतना की दिशा उसके चलते उन्माद, मनोविकृति, आत्महत्या, अपराध और हिसा की घटनाएँ दिन-दिन बढती चल रही है । ऊपर से सम्पन और समृद्ध दिखने गले आधुनिक जीवन में असुरक्षा और निराशा की जा अन्तर्निहित भावना सतत विराजमान है, उसमे आज के हताश मानव को एक नवीन विश्वास, एक नवीन आणा ओर सम्भवत एक नवीनं जीवन-पद्धति की तीव्र आवश्यकता हैं जो मानव के दैनन्दिन जीवन की समस्याओं के निराकरण में उसकी सहायता कर सके और उसे ऐसी शक्ति प्रदान कर सके जिसके सहारे वह आज के जटिल आधुनिक जीवन की गश्भीर चुनौतियों का डटकर सामना कर सके । ऐसी परिस्थितियों मे फेंसे होने के कारण सामान्य मानव सहज ही ऐसे किसी भी व्यक्ति पर विश्वास करने को और उसका अनुगमन करने को उत्सुक रहता है जे उसे इस बात का आश्वासन दे कि मेरे पास चमत्कारी रामबाण और शीघ्र लाभकारी औषध है । यथार्थत यही कारण है कि बाजारूपन मे दक्ष, सम्मोहक व्यक्तित्व वाला कोई भी व्यक्नि व्यापक प्रचार, धुआँधार विज्ञापन तथा प्रचारको की लम्बी सेना की सहायता के बल पर अपने अनुयायियो की भागी भीड जुट लेता है । परन्तु जैसा कि प्रत्येक नए साहसिक कार्य के सम्बन्ध मे होता है कि आरम्थिक जोश शीघ्र ही ठण्डा पड जाता है और तब लगभग इनके अनुयायियो का भी भ्रम टूटने लगता है । उस स्थिति मे ऐसे व्यक्ति या तो सपूर्णत मानवद्वेषी या दोषद्रष्टा बन बैठते है या वे फिर किसी नए मसीहा के आगमन की आशा बॉधने लगते है । ऐसी हालत मे पहले से ही फैला हुआ भ्रम और अधिक बढने लगता है और इस दु खद परिस्थिति से बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं सूझता । आज ऐसे बहुत-से लोग है जो जीवन की मूल समस्याओ के समाधान की अपेक्षा पलायन के जाले मे अपने को फेंसाए रखने मे अधिक रुचि लेते है । ऐसे लोग आज एक वाद का अजुगमन करते दिखेगे तो कल दूसरे वाद का । आज एक नेता के पीछे है वो कल दूसरे के । ये नए से नए समूह मे ही हमे घूमते दिखाई पडेगे परन्तु इन लोगो के अतिरिक्त कुछ गम्भीर प्रकृति के ऐसे लोग भी है-भले ही अभी उनकी सख्या कम है, पर वह उत्तरोत्तर बढती चल रही है, जो अपने समझ्ष उपस्थित की गई बातो पर अन्वेषण करना, उनका गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना और उन पर प्रयोग करना पसन्द करेगे वे उसके गूढार्थो, निहितार्थों को पूर्णरूपेण समझे बिना किसी भी विश्वास या श्रद्धा को अग्रगामी होने के कारण ही स्वीकार नहीं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now