स्वप्नवासवदत्तम | Swapnvaassavdattam

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Swapnvaassavdattam by जयपाल विद्यालंकार - Jaypal Vidhyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( নী ) सकता । “इसके अतिरिक्त स्फुट रूप से भास के नाम से उपलब्ध तेरह पद्यों में से एक भी इन उपलब्ध नाटकों में नहीं मिलता । श्रतः ये नाटक मूल नाटकों कै संक्षिप्त या परिवर्तित रूप हैं और भास के कुछ नाटक श्रभी मिले ही नहीं हैं, ऐसा परिणाम निकालना श्रविक युवितयुक्त होगा । तेरह नाटकों में से जिनके विषय में कोई संकेत कहीं नहीं मिलता उन्हें एक वण्डल में मिलने से या कुछ समानता के कारण एक ही नांटक-मण्डली से सम्बद्ध तो माना जा सकता है किन्तु भास के साथ जोड़ने के लिए और प्रमाणों की अपेक्षा है मलयालम के विद्वानु श्री ए० के० पिपारोदि और श्री के० आर० पिपारोदि का कहना है क्वि केरल की चाक्यार नाटक-मण्डली ने इन नाटकों को अपनी গ্গান- इबकतानुसार अपने स॑चे में ढाल कर विभिन्‍त मूल नाटकों से नकल किया होगा श्रौर श्री टी० गणपति शास्त्री को इन्हीं का वण्डल मिला है । इस पक्ष को भी अभी प्रवल साधक युक्‍क्तियों की श्रावश्यकता है । इन्हीं तेरह नाठक में से कुछ रंगमझूच की दृष्टि से ग्ोघे हुए नहीं जान पड़ते । अविमारक॑ संस्कृत में उपलब्ध विशुद्ध काव्य 'की हृष्ठि से लिखे गये, अन्य नाटकों की श्रेणी का ही एक नाटक प्रतीत होता है । उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन से ऐसा प्रतीत होता है कि उपलब्ध तेरह नाटक 'तो अवश्य ही १५वीं, १६वीं शत्ती की केरल की किसी नाटक-मण्डली (सम्भवतः चक्यार) कौ सम्पत्ति है । इनके मूल प्रावार श्रत्यन्त प्राचीन ह । नाटक-मण्डलीने अपनी विशेषता के लिए इनमें श्रादि और प्रस्त कौ भ्रपनी शली के प्रनुसार वदल 'लिया है । रद्धमझच की दृष्टि से इन्हें शोघा भी है । कुछ भाग को संक्षिप्त किया है भ्रौर कुछ को सम्पूर्ण रूप से ही छोड़ दिया है । भाषा इत्यादि में भी सम्भवत: कुछ- कुछ परिवर्तन किया हो । इनमें से कुछ के मूल रचयिता अवश्य भास प्रतीत होते हूँ। ये सभी भास-रचित हैं या फिर केवल ये ही भास की रचनाएँ हैं, ऐसा कुछ भी निणंयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता । कोई भी एक परिणाम सब नाटकों पर ठीक से लागू नहीं होता । इससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि यह संग्रह नाटक-मण्डली की सम्पत्ति न होकर किसी एक व्यक्ति या परिवार की सम्पत्ति हो | उन्होंने मुख्य रूप से अपनी श्रास्था की पात्र नाइक-मण्डली के संशहीत नाटकों को अपने पास रखा हो और अपनी रुचि के कुछ श्रीर्‌ नाटक भी इस संग्रह में मिला दिये हों । यह भी सम्भव है कि नाटक- मण्डली ही पूरी तरह से सभी नाटकों को किन्‍्हीं परिस्थितियों के कारण न थोघ पाई हो । कुछ भी हो, इन सभी नाटकों के रचयिता भास ही हैं ऐसा तो निर्णयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता ।




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