श्री वाराह महापुराण भाषा | Shri Varah Mahapurana Bhasha

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Shri Varah Mahapurana Bhasha by काशीराम चतुर्वेदी - Kaashiram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ चाराह पुराण र तारखत नाम से में असिद्ध था। ओर बहुत धन धान्य से सम्पत्न था, और मेरे वहुत परिवार था, एक समय एकान्त में मेंने विचार किया इव परिवार और सथत्ति से मुझे क्या प्रयोजन है। इस सांसारिक कार्य को पुत्रों के आधीन करूँ वन में जाकर भगवान्‌ का भजन करूँ । यह निश्रय कर तप करने के लिये सारखत नामक सरोवर को चल दिया । ओर वहाँ पहुँच कर पुराए पुरुष विष्णु ओर शिव की आराधन की और भक्ति पूर्वक नारायण खरूपं मह्म पार नामक स्तोत्र से स्त॒ति की । मेरे ब्रह्य पार्‌ स्तोत्र फ जय करने से प्रसन्न हये भगवान्‌ प्रसत्त हए 1 भियत्रत. उवाच, प्रियत्रत राजा नारद से पूछने लगा कि भगवन्‌ ! जिस स्तोत्र से स्तुति करने पर भगवान्‌ आपको प्रलत्त हुए। उस লগ पर स्तोत्र को मुझे सुनाने की कृपा कीजिये । नारद उवाव | नारद भियत्रत राज से बह्मपार स्तोत्रं कहने लगा । पर (विष्ण ब्रा, महेश) से मौ पर(ओर 8) पुराण (अनादि) अनन्त पराक्रम वाले पुरुषोत्तम भगवान्‌ को नमरकार करता हैँ। जिसके समान दूसरा कोई नहीं हे, उम्र तेज वाले, गम्भीर बुद्धि वालों में प्रधान, सबके नियन्ता, हरि भग्वान्‌ को म नमस्कार करता हूँ। शुद्ध जिन्हों का स्थान हे, विशाल, सुन्दर नारायण भगवान्‌ की स्तुति करता हूँ । प हले यह जगत शूब्य था आपने इसकी रचना को, झोर स्थिति को, रज तम ओर गुणों से रहित, नारायण भावान्‌ मेरे शरण (रुक) हों। जिन्‍्हों का पार (नही, अनादि, भेय॑ और च्षमायुक्त, शान्त,विश्व के ईश, ऐसे महानुभाव को स्तत करता ई । सदस (असय) मस्तक शौर असुख्य हाथ




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