एक वायलिन समन्दर के किनारे | Ek Vayalin Samandar Ke Kinare

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Ek Vayalin Samandar Ke Kinare  by क्रिशन चन्दर - Krishan Chandar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालूम होता है.” केशव न अपने मन-ही-मन में सोचा । फिर उससे कहने लगा, “अरे भलेमानस, बस तू बस वस ही करता रहेगा या कुछ बतायेगा भी ? औरगाबाद कैसे जाऊं २” 'क्सान ने अपने दिल मे कहा, “्रजव घमड जोगी से वास्ता षडा है |! जाने क्सि गुफा मे साता रहा है। इसे दुनिया का कुछ मालूम ही नही ।' मगर किसान प्रकृति से शरीफ था और पत्नी भी उसवी धम- केमवाली थी । इसलिए वह्‌ जोगियो से कसी हद तक डरता भी था। अत उसने फिर हाथ जोडे और बडे भोले स्वर भे कहा महाराज इन खेतों को पार करके उस सडक पर चले जायें, वह जो सामने नजर आती है ।” “वह काली-सी सडक ?” “जी हा অয वहीं से मिलेगी, उसी से चले जाइए ।” फिर वही 'बस' | केचाव ने अपने दिल मे कहा। कितु उसने क्सिन से श्रौर अ्रधिवः कुछ पूछता वेबार समभा और सेता कौ ज्दी-जल्दी पारः करबे! सडक पर जा पहुचा और उस पर पदल चलने लगा। अजब सडक रै यहं । कसी कठोर श्रीर पथरीली है यह्‌ 1 हमारे समय मे सखे कैसी नम हमरा करती थी ! उनकी भूरी मिट्टी पाव को नही चुभती थी । इस सडक पर चलत चलत ता पाव तप जाते है। शायद छाले भी पड़ जायेंगे मालूम होता है इन दी हज़ार वर्षों मे राज्य वा काय बहत बिगड़ चुका है, तभी ता ऐसी बुरी सडकें बनने लगी हैं। खैर, ग्रब क्या कर सकते है ? जैसे-तैसे इसी सडक पर चल कर भौरगाबाद जाना होगा । यह शौरगाबाद क्‍या नाम हुआ ? श्ौरग ? झौरग २? शायद गोरग का बिगडा हुआ नाम होगा। खूब । इन दो हजार वर्षों मे इन लोगो ने पुराने नामा की मिट्टी भी पलीद कर दो है। ऊंह ? गौरग को झौरग वर दिया छि स तरह सोचता हृभ्रा देव षौलतार दी पक्वी सडक पर चलता रहा । थोडी देर वे बाद उसके वानो मे घूं घू वी झावाज श्राने लगी । उसने पीछे मुडकर देखा, तो वही भ्राइवय से सडक वे वीच खषे-का-खडा रह गया। हए्थी से भी एक बडा जानवर बाते देव वो तरह गरजता एक वायलिन समन्दर वे बिनारे / १६




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