संस्कृत महाकाव्यों में नारी की राजनितिक भूमिका | Sanskrit Mahakavyon Mein Nari Ki Rajnitik Bhoomika

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Book Image : संस्कृत महाकाव्यों में नारी की राजनितिक भूमिका  - Sanskrit  Mahakavyon Mein Nari Ki Rajnitik Bhoomika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस्लाम के उड़न बछेड़े पर सवार होकर अरबों ने लगभग सी वर्षों के समय अन्तराल में सम्पूर्ण मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य एशिया पर आधिपत्य स्थापित कर लिया । परिणाम स्वरूप एशिया ओर योरोप के मध्य व्यापार के तीनों पारम्परिक मार्ग अरबों कं नियंत्रण में आ गये | अरबों ने एशिया-योरोप व्यापार को पूरी तरह रोक दिया अथवा भारी चुंगी आदि के रूप में अवरोध उत्पन्न किया |» योरोप में मंहगाई आसमान छूने लगी इन तीनों व्यापारिक मार्गों” को खोलने के उपायों पर विचार किया जाने लगा। अन्ततोगत्वा योरोपवासी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि व्यापार-मार्ग रणक्षेत्र के बीच से ही गुजरेगा | इसके लिये जनता की धार्मिक भावनायें भड़काई गयीं। क्रूसेड तथा जिहाद (धर्मयुद्ध) का लम्बा रक्‍तरंजित इतिहास रचा गया। इतने पर भी योरोपवासी एशिया-यूरोप व्यापारिक मार्गों को खोलने में सफल न हो सके [४० पुर्नजागरण के प्रेरक तत्व ओर नारी 1. तकं तथा विवेक की स्थापना | धर्म युद्धों के दौरान योरोप प्राचीन यूनानी दर्शन कं सम्पकं मेँ आया ॥' ईसाई धर्म की जडता, मूढता तथा अंध आस्था का स्थान सुकरात की तकं प्रणाली, अरस्तू की वैज्ञानिक पद्धति तथा कार्यकारण सम्बन्धो ने लेना शुरु किया। ज्ञान-विज्ञान अंगडाई लेने लगा। कोपर निकस के सौर मण्डलीय विचारों ने हलचल उत्पन्न कर दी ८ पृथ्वी चपटी नहीं अपितु गोल है, पश्चिम की ओर चलते हुये पूर्व में पहुँचा जा सकता है। ऐसी ®) नेहरू जवाहर लाल : विश्व इतिहास की झलक, पृ (8) नेहरू जवाहर लाल: विश्व इतिहास की झलक, पृ. 24,28 ` (9) उस समय एशिया तथा योरोप के मध्य व्यापार के तीन मार्ग थे। द 1. रेशम मार्ग-चीन योरोप के मध्य॒ 2. भारत से ईरान, तुर्की वाल्कन से योरोप तक एवं 3. द.पू. एशिया-द.प,. भारत, अरब सागर, लाल सागर से भूमध्य सागर-रोम तक হা জাল




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