निराला रचनावली | Nirala Rachnavali

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Nirala Rachnavali by गोस्वामी तुलसीदास - Goswami Tulsidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिलता है, जो या तो प्रकाशित नहीं हुईं, या लिखी ही नहीं गयी । वर्षागीत नाम से निराला का कोई कविता-संग्रह नही छपा | उच्छु खल और हाथों लिया नामक उपन्याक्ष लिखने की उन्होंने योजना बतायी थी, लेकित वह कार्यान्वित नहीं इई । इसी तरह का उनका एक अलिखित उपन्यास सरकार की आँखें भी है । चमेली भर इख्दुलेखा तिराला के पूरे नहीं बल्कि अबूरे उपन्यास है। इनका उन्होंने आरम्भ ही किया था। इनके लिखित अंश रचनावली के चौथे खण्ड में सकलिन कर लिये गये है। तीत नाटक भी तिराला-लिखित बतलाये जाते है--शक्षुश्तला, खमाज आर ऊषा ¦ इनमे > पहले दौ नाटक निराला ने निहालचन्द एण्ड को, कलकत्ता कै स्वामी श्री निहाल बन्द वर्माके आश्रहु पर लिखे थे । यह अनुमावत 1927-28 की बात है, जब कलकत्ता और 'मतवाला' से उत्तका अन्तिम रूप से सम्बन्ध-बिच्छेद न हुआ था। श्री वर्मा के भाई श्री दयाराम वेरी ने लिखा है कि “शकुन्तला' नियमित समय पर छप भी गयी थी। (महाकवि श्री निराला धभिनन्दन ग्रत्थ, सम्पादक श्री बर्ञ, प. 57} लेकिन 1943 ई. मे स्वयं निराला ने शा, रामविलास शर्मा को सुर्चित किया था कि समप्ताज और वकुन्तला अभी तक प्रकाश में नहीं आये [निराला की साहित्य-साधना! (3), पृ. 399] इसी आधार पर यह समझा गया था कि इसमें से कोई तादक आज तक प्रकाशित नहीं हुआ और अब उनकी पाण्डुलिपि का कही कोई चित्न नहीं है | बाद में श्री कृष्णवन्द बेरी ने यह शूचना दी कि “निरालाजी लिखित कुन्तला भण प्रकाशन हमारे यहं से हुआ था किन्तु वह उनके ताम से नहीं छपी थी। वे उन दिनों हमारे यहाँ डेली- वेजेज पर पौराणिक पुस्तकें लिखते थे। झकुस्तला उसी क्रम की एक पुस्तक है! यह मेरे स्वर्गीय पिता निहालचन्द वर्मा के वाम से छपी थी। यह पौराणिक उपाख्यान है, नाटक गहीं ।” इससे श्री दयारशाम बेरी के कथन की पुष्टि होती हे | पुस्तक नाटक है या उपासख्यात, इसका निर्णय उसे देखकर किया जा सकता था, लेकिन दुर्भाग्यवश बहुत प्रयास करने पर भी वह पुस्तक नहीं मिली | समाज भाहेश्वरी-कोलवार-प्रकरण पर आधारित एक प्रहसन था, जो प्रकाशित नही हुआ, लेकिन उसका हिन्दी नाह्य समिति की ओर हे मंचन हुआ था । उसमे स्वयं निराला दो पात्रों की भूमिका में उतरे थे। ऊषा नामक नाटिका 'सुधा' में विज्ञापित हुई थी, पर यह लिखी नहीं गयी । प्रबन्ध-पश्चिय अथवा प्रबन्ध-प्रतीक के नाम से भी निराला का कोई निबन्ध-संग्रह कभी नहीं तिकला। इसी तरह वैदिक. साहित्य नापक भी उनकी कोई मौलिक अथवा अनूदित पुस्तक नहीं है। रस-अलंकार नामक पुस्तक निराला ने 1926 मे पुस्तक भण्डार, लहैरिया- सराय के लिए लिखी थी । यह छात्रोपयोगी पुस्तक थी । इस पुस्तक का प्रकाशन निरिचत था, पर किसी कारण वह भी हमेशा के लिए टल गया और समाज नामक লাতন্ক কী तरह इसकी पाण्डुलिपि भी नष्ट हो गयी | दी पोपुलर ट्रेडिंग कम्पनी कलकत्ता के आदेश पर 1928 ई. में निराला ने उन हिन्दीभाषियों के लिए, जो बंगला सीखना चाहते थे, एक पुस्तक लिखी थी-..हिन्दी बंगला-दिक्षा । यह षषी से उसी वर्ष के में प्रकाशित भी हुई थी यह चूकि शुद्ध হেয় मे चिल्ली गयी पुस्तक है इसलिए इसे मे सम्मिलित नहों किया गया




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