गर्जन | Garjan

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Garjan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गजंन ४ अन्तिओक महान ने हिन्दुकुश पारकर फाबुल के हिन्दू राजा सुमागसेन को हराया | परन्तु आगे बढ़ता कुछ आसान न था। अपतली महत्ता में कालिख लग जाने के भय से अन्तिओक महान अपनी सेना पीछे छोड़ सीरिया की ओर ভীতি चला। परन्तु सेसापति आन्द्रोस्थीनि की अध्यक्षता में उसकी सेना बाह्ीक आदि यवन राज्यों की अन्य सेनाओं के साथ मगध की कोर बढ़ी । शालिशक मोय का अभमी-अभी देहावसान हुआ था और सोमशर्मा के दरबल करों में सोया का राजदंड अस्यथिर हिल रहा था | यवनवादिनी ने मथुरा और साकेत लॉधकर অমন হী তালা में प्रवेश क्रिया। अजातशत्र का राजयूह अब सोमशर्मा का पाटलिपुत्न था । अब पाटलिपुत्र में न तो सिल्यूकस का विजेता चन्द्रगमम था और न उसका पथ-प्रदशक चाणक्य | यवना की सेना का मार्ग कहीं न रुका। सोमशर्सा मौर्य गोरधमिरिं की ओर भागा ओर मगध-साम्राज्य की सेना पहले से ही बौद्ध चकी थी। संघ के पग्रचर प्रभाव ने सगध का হীত पादी कर दिया था। साम्राज्य की सेना ने हथियार डाल दिए। केवल मोयां के पुरोह्िित-बंश का सवसेनापति कुछ समय तक यवनो की अपार बाहिती से लोद्ाय लेता रहा, फिर पराजय अनिवार्य जान बोद्धों को कोसता हुआ वह सी गद्य के पार उतर गया । मगध की राजधानी कुसुमपुर ने यचतों को स्वीकार फकिया। परन्तु यवन कुसुभमपुर को भोगले नहीं आए थे। वे आए थे उसका ध्वंस करते | ~ यचनों को प्रतिशोध लेन था वावेरु श्रौर मिख के बारिल्य का, उनके यवन-वरिक की मद्य का, अपनी खोई यवनिर्यो के दासत्व का | वावेरु ओर मिस्र में, सीरिया और वाहीक में




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