युक्त्यनु शासनम | Yuktaynu Shasanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
203
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भी कह सकते हैं, कि बुद्धि का भी तो हम संसारी আনা बे
तरतममभाव देखा बाता है, अतः इसका भी कहीं न कहीं सम्पूथ
रूप से अमाव होना चाहिये ? परन्तु ऐसा तो होता नहीं हे।
क्योंकि ऐसी मान्यता में आत्मी के निब्र लक्षण का अभाव
हो जाने से, या तो उसमें अन्नता ही सिद्ध हो जायगी-या आत्म
द्रव्य का निज लक्ष के भ्रमाव मेँ अभावं मानना पडेगा |
उत्तर--बुद्धि का सर्वथा अभाव अचेतन प्रृश्वी आदिकों
में माना ही है ।
प्रश्न--वहां तो उसका अत्यन्ताभाव है-प्रध्वंसाभात्र नहीं १
उत्तर - नहीं, पहां अत्यन्ताभाव नहीं है, प्रध्ंसाभाव ही
है | वह इप प्रकार है-पृथ्वीकायिक ओर्व हारा जब प्रथ्वी रूप
पुदूगल शरीर रूप से ग्रहीत किया हुआ रहता है, तब उसमें
बुद्धि रूप चेतना गुण का संबन्ध से अस्तित्व माना जाता हे,
पश्चात् जम वही पुद्गल अपनी आयु के आवसान होते ही
उनके द्वारा छोड़ दिया जाता हे, तब उसमें से उसकी निशृत्ति
होने पर उसका अभाव हो जाता है ! इस प्रकार उसमें सद्भाव
पूबक ही अभाव सिद्ध होने से उसका वहां अत्यन्ताभाव ले होकर
प्रध्वंसाभाव दी है । चेतनगुणसूप बुद्धि का पृथ्भ्यादिक अचेतन
ঘহমন্ मे सर्वात्मना अमाव होने से अत्मा म अपने निज
लक्षणत्व के अभाव की आशंका कंसे आ सकती है। यह तो
तमी संभव थी कि जब आत्मा में इसका सबधा अभाव माना
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