जयंत | Jayant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्य |] पहला शङ्क ११
1 | শি न क ५५ 1 क, এস জে চি জমি ^ | পানি লী পর লা , 20 পাটি +)
कल्याणी-( पीठ पर द्वाथ फेरठी है । ) भाग्यवती बेटी !
गोरी--सब तुम्हारी कृपा का फल है कल्याणी माँ ! तुस
न पढ़ने के लिये सहायता देती, तो मेरे ग्ररीव मा-बाप बेचारें
क्या कर सकते थे ? ( कुछ झहरकर ) आधचार्याजी तुम को बहुत
याद किया करती हैं। तुम्दारी प्रशंसा सुना-सुनाकर हम सबको
उन्नति की ओर दोड़ाया करती हैं।
कल्याणी--( आँखों में प्रेमाअ भरकर ) आचायाजी का
दशन कयि द घषं होगये । उनकी उत्तम शिक्षा का
लाभ मेँ गृहस्थी मे प्रति त्षण उठाती हूँ बेटी; ग्रहस्थी के धोर
अंधकारमय जीवन-पथ में जहाँ कहीं জুদ सतिश्रम द्वोता है,
वहाँ आचार्यांजी दीपक लिये हुये मुझे मांग दिखाती हुई खड़ी-
सी मिलती हैँ गौरी; उनके तो स्मरण-मातन्र से हृदय पवित्र
ओर बलवान द्वोता है ।
( यह कइले-कददत कश्याणी का चेहरा गंभीर और दृष्टि स्थिर शो
काती है । )
गोरी--अशोक भइया का क्या हाल है ९ कल्याणशी माँ !
कल्याणी--अशोक इस षषं विद्यालय की उच्च श्रेणी भे
गया है। गत वध उसे भी बेटी, तुम्हारी तरह अच्छे नम्बर
मिले थे ।
(गौरी की আবী दष से डवडक्रा शातोद और वह कल्याण के
मुँड पर टकटकी लगाकर देखती है ।)
गौरी--कल्याणी माँ, यह तुम्हारे पुण्य का प्रताप है।
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