स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी पत्रकारिता में भाषा प्रयोग के विविध रूपों का अध्ययन | Swatantra Hindi Patrakarita me Bhasha Prayog ke Vividh Rupo ka Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कारी मगल पाण्डेय को फासी दी गई | परिणाम स्वरूप एक सशक्त जन-आन्दोलन त्रिटिश सरकार के खिलाफ उठ खडा हुभा। सैनिको तथा आजादी के दिवानो की टोलिया ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ निकल पडी। एसे समय मे पयामे-आजादी' ने अपने सम्पादकीय मे लिखा- बरेली ओर मुरादाबाद की सैनिक पलटनो के सेनापतियो का दिल्ली की सेना की ओर से हार्दिक आलिगन। भाइयो। दिल्ली मे फिरगियो के साथ आजादी की जग हो रही है खुदा की दुआ से हमने उन्हे पहली शिकस्त दी है उससे वे इतना घबरा गये हैं जितना कि वे पहले ऐसी दस शिकस्तो से भी न घबराते। बेशुमार हिन्दुस्तानी बहादुरी के साथ दिल्‍ली मे आकर जमा हो रहे हैं। ऐसे मौके पर आपका आना लाजिमी है। आप अगर वहा खाना खा रहे हो तो हाथ यहा आकर धोइये | हमारा बादशाह आपका इस्तकबाल करेगा | हमारे कान इस तरह आपकी ओर लगे हैँ जिस तरह रोजेदारो के कान सुअज्जिन के अजान की तरफ लगे रहते है हम आपकी आवाज सुनने के लिए बेताब हँ । हमारी आखे आपके दीदार की प्यासी हैं बिना आपकी आमद के गुलाब के पौधे मे फूल नही खिल सकते ।(1) पयामे-आजादी के बाद अनेक पत्र-पत्रिकाए प्रकाशित होती रही | इनमे प्रमुख है- प्रजा हितैषी' (आगरा 1861) ज्ञान प्रदायिनी पत्रिका (लाहौर 1866) अत्मोडा अखबार (871) विहार बन्धुः तथा हिन्दी दिप्ति प्रकाशन (कलकत्ता 1872) सदादर्श' दिल्ली 1874) आर्यमित्र (काशी 1878) भारत मित्र (कलकत्ता 1878) सारसुधा निधि' (1879) उचित वक्ता (कलकत्ता 1880) हिन्दी प्रदीप प्रयाग 1878) आर्य दर्पण' (शाहजहापुर 1878) मित्र विलास' (1878) सज्जन कीर्ति सु 7कर' (उदयपुर 1879-80) आदि 12) इन पत्रो मे भारत मित्र सारसुधानिधि उचित वक्ता एसे पत्र थे जिन्होने 72 प्रत्रकारिता के विविध परिदृश्य सजीव भानावत पृष्ठ 51 की




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