सांप्रदायिक समस्या | Sampradayik Samashya

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Sampradayik Samashya by पद्मनाथ सिंह - Pamnath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंग्रेजी राज्य के पहले हिंदू और मुसलमान १३ का विश्वास था मानव का उद्धार ओर कल्याण इस्लाम के द्वारा ही हो सकता है | जजिया कर के द्राय उसने इस्लाम के अनुयायियों को कुछ सुविधा देनेका प्रयत्न किया। औरंगजेब का जीवन निर्दोष, सरल और पवित्र था। वह अपने जीवन का दृष्टि कोण उच्च कोटि की आध्यात्मिकता की कसौटी पर कसता था, ओर सभी प्रकार क व्यथं तथा बनावट व्यवहारं से धृणा कर ठोस सरलता पूं जीवन का ससथंक था । इसी लिये किसी दूसरे चेत्र मे उसके काये में हिन्दू और मुसलमान के बीच भेद-भाव का वताव नहीं मिलेगा। मुगल बादशाह आलममीर अत्याचार श्नौर ऋर कहा जाता है, किन्तु उसने भी सजहब में कोई छेड़-छाड़ नहीं की । रायबहादुर श्री ज्ञान शंकर कपाशंकर पण्ड्या एम० ए० ने लिखा है “बनारस के अपने सूबे दार को बादशाह आलमगीर ने आदेश दिया था कि, “अपने हिन्दू रियाया के साथ जुल्म न करना। उसके साथ धार्मिक उदारता का वर्ताव करना, और उनकी धार्मिक भावनाओं का लिहाज करना ।” (विश्व बाणी जून, ४४ ) जिस समय हिन्दुस्तान में मजह॒बी ऋरता या साम्प्रदायिकता की लेश मात्र भी गंध न थी बल्कि, अकबर का विस्तृत ओर व्यापक दृष्टिकोण अपना शानी नहीं रखता था उस समय की योरप और इंगलेंड की दशा की विवेचना अनुपयक्त न होगी। श्री राम शर्मा ने, दिनी रिलिजस पालिसीज आवूदि युगल इम्पायरः में लिखा है” “यह याद रखने योग्य है कि जब योरप अपनी लड़ाकू




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