नवरस | Navaras

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Navaras by गुलाबराय - Gulabrai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) करता है, हमको उसका पूरा आनन्द तब तक नहीं श्राता जव तक कि हमको यह विशेष रूप से नहीं माठूम हो जाता कि एक वेणी रखना वियोगिनी स्त्री का चिह्न है अथवा प्राक्ृतिक दृश्यों के बरणन में तभी पूरा आनन्द आता है जब कि दम उनका उद्दीपन रूप देखते हैं ओर उनके स्राथ किसी कवि की अनूठी उक्ति अथवा किसी चित्ताकषक्र दृश्य का भी स्मरण हो आता है। वह स्मृति हमारी दृष्टि को और भी तीत्र बना देती है। जब: मानव भावों के साथ प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन किया जाता है तब उनमें एक अपूव आनन्द आने लगता है। कविता द्वारा जड़ ओर चेतन संसोर का मानव-हृदय के भावमय सूत्र में एकत्री- करण हो जाता है । कवि केवल आँख से ही नहीं देखता वरन्‌ वह हृदय से भी देखता है । उसके दृश्य की अचल शान्ति में संघषेणमय दृश्य भी अपना भीषण आकार छोड़ कर सौम्य रूप धारण कर लेते हैं । फिर उनको हम त्रिना किसी कष्ट के अध्य- यन कर सकते हैं । केवल उनका अध्ययन ही नहीं करते वरन्‌ उनका आन्तरिक भाव जानने में समर हो जाते हैं । कवि की हतूतंत्री विश्व के संगीत से मंकृत हो सृष्टि के अन्तसाम्य का परिचय देने लगती है । कवि को अपने निमल हृदय में संसार प्रतिबिम्बित दिखाई देने लगता है। काव्य का ज्ञान कवि के हृदय का परिचय करा उसके द्वारा सारे संसार के अन्तभोवों ओर उद्देश्यों का सम्यक्‌ ज्ञान करा देता है । प्रस्तुत पुस्तक इसी दृष्टि से लिखी गई है कि नवरस का अध्य-- यन विद्याथियों को जीवित मानव-समाज और उसके काव्यमय चित्रों की रुचि के साथ सममभने में सहायक हो । यदि इस प्रन्थ




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