मुक्तधारा | Muktdhara

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Muktdhara  by रविंद्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नुक्तणशय ५ विभूति उनकी क्या आज्ञा हे ? दूत টিন इतने दिनों से तुम हमारे मुक्तथारा झरन को बाँध बाँध- कर रोक देने की चेष्टा कर रहे थे । वह बार बार टूटा, कितने लोग बालू-पत्थर के नीचे दब मरे, कितने लोग बाढ़ में बह गये । आज अन्त में-- विभूति उनका प्राण देना व्यर्थ नहीं हुआ । हमारा बाँध तेयार हो गया । दूत शिवतराई की प्रजा ने बाँठछ অল जाने की खबर अभी तक नहीं पाई । वे विश्वास हो नहीं कर सकते कि जो जल देवता ने उन्हें दिया है उसे कोई मनुप्य बाँध सकता है । पिभूति देवता ने उन्हें कैेब७ जल ही दिया है: किन्तु हमें दिया है उस्र जल को बाँधने का बल । दूत वे लोग निदिचन्त ह, नहीं जानते किं इस सप्ताह के बीतते ही उनके खेत-- विभूति उनके खेत, क्या कहते हो ? दूत बाँध बाँधकर उनके खेता को सुखा डालना हीक्या तुम्हारा उदेद्यन था ? तुम्हारा उद्श्य दिमृति बालू, पत्थर और जल--इन तीनों के षड़यंत्र को नष्ट




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