श्रीमद रामानन्द दिग्विजय | Shrimad Ramanand Digvijay
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
460
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवद्दास ब्रह्मचारी - Bhagwaddas Brahmachari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ष्र्
तिरस्कार न होता । यदि हमारे यहां तीङ्करोका अनुकरण हाता तो हिन्दु
घमं इतना बुद् नहीं हे किं वह जनकौ सङ्ख्या परतन्त्र हाकर २४ दही
अवतार लिखता । वह श्रवद्य ८ लिखता । याद हिन्दुधम जेन मतकरा
अनुकरण होता तो तो वह अपने देवी दवताश्रर शृङ्गारमय न रखता
क्योंकि वह जान सकता था कि वीतरागताका बेसुरा अलाप अलापनेवाला
जेनमत मरा खण्डन करेगा । यदि हिन्दुधर्मं जेनपरतका अनुक्ररण होता तो
भागवत जसे प्रनथमे कमी भी ऋषमदेयकरो अवतार न स्वीकार किया जाता
इत्यादि अनेक कारण चताये जा सकते हैं कि हिन्दुर्म किसी धर्मका अनु-
करण नहीं है । म्रत्युत अन्य सव॒ मत इस पुराणधर्मके अधमणे हें ।
নব: जैनमत हिन्दुधर्मके देवी, देवताओं, ऋषियों और मुनियोंके
वे ही पौराणिक और ऐतिहासिक नाम लेकर उन्हें जैनमतकी गूदड़ीम ढ़ांक-
নঈ प्रथत्ममें लगा हुआ था तथा उसकी यह प्रबल इच्छा थी कि जैनमत
हिन्दुधर्मकों हड़पकर जाबे, अतः मैं कहता हूँ कि जैनमत हिन्दुधर्मका-
प्रबलतर शत्रु था |
इन दे शत्रुओका सामना करके हिन्दुधभकी रक्षा, हिन्दु मर्यादाकी
रक्ता, दिन्दुजातिकी रन्ता, दिनदुसम्यताकी रक्ता, वैदिकरूढ्की रकता,
वैणावधर्मकी रक्षा-इत्यादि अनेक कार्य थे जिनकरेलिये परमाचार्य्य श्रीरामा-
নন্ছু स्वार्मीजी महाराजका इस धराधामपर पदारपण हुआ ।
श्रीमद्वाल्मीक संहितामें एक कथा लिखी है। उसका सारांश यह है
कि एक मनसुख नामका ब्राह्मणकुमार अ-
शरीस्वामीजीकी अवेतस्भूमि पने मातापितासे पएथक होकर জানান
ओर उनका समग्र तीभराज-प्रयागके किसी अरण्यम निवास करता
था । वह सर्वेश्वर श्रीरामजीक्रा परम भक्तं था।
प्रभु उसकी अनन्यनिष्ठा देखकर, बालरूप घारणकर, उसके साथ ऋ्राइक
व्याजसे वहां प्धारे। बहुत देर तक साथ खेलनेके कारण दोचों बालका्म
शुद्ध अनुराग उत्पन्न हुआ | अमु जब जाने लग, मनछुल रान सगा ।
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