मोक्षमार्ग प्रकाश के की किरणे भाग 2 | Mokshamargaprakashak Ki Kirane Bhag 2
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
470
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के भी सिद्धस्यः नमः के
क श्री मोश्षमाग प्रकोर्शकेम्यः नस,
4
अध्याय सातवा
जैनमताजुयायी मिथ्यादृष्टियों का स्वरूप
[ बीर स? ०४७६ माघ शुक्ला १०, शनि, २४-१-५३ ]
दिगम्बर सम्प्रदायमें सच्चे देव-ग्रुर-शासत्रकी मान्यता होने
पर भी जीव मिथ्यादृष्टि किस प्रकार हैं ? वह कहते हैं । जो वेदान्त,
बौद्ध, श्वेताम्बर, स्थानकवासी श्रादि हैं वे जेन मतका अनुसरण
करनेवाले नही हैं,--यह वात तो इस शासत्रके पाँचवें अधिकारमे
कही जा चुकी है। यहाँ तो यह कहते हैं कि---जो वीतरागकी
प्रतिमाको पूजते हैं, २८ मल ग्रुण घारक नग्न भावलिंगी मुनिको
मानते हैं, उनके कहे हुए शासत्रोका भ्रभ्यास करते हैं--ऐसे जैन-
मतानुयायी भी किस प्रकार मिथ्यादृष्टि हैं ।
“सता स्वरूप” में श्री भागचन्दजी छाजड मे कहा है कि
दिगम्वर जैन कहते हैं कि--हम तो सच्चे देवादिको मानते हैं इस-
लिये हमारा ग्रृहीत मिथ्यात्व तो छूट ही गया है। तो कहते हैं कि-
नही, तुम्हारा गरहीत मिथ्यात्व नही छूटा है, क्योकि तुम गृहीत
भिथ्यात्वको जानते ही नही । श्रन्य देवादिको मानना ही गृहीत
मिथ्यात्वका स्वरूप नही है। सच्चे देव-गुरु-शाख्षकी श्रद्धा वाह्ममें
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