भारतीय दर्शनशास्त्र का इतिहास | Bhartiy Darshan shastra ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.99 MB
कुल पष्ठ :
442
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज - Mahamahopadhyaya Shri Gopinath Kaviraj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मूसिका इस श्रार्थिक संकट और भ्रतिइंद्विता के युग में दशन जेसे गंभीर विपय दर्दासझास् पर पुस्तक लिखने वाले से कोई भी व्याचह्दारिक को ्रावस्यकता..... चुद्धि का मनुष्य यकायक पूछ सकता है इस की घावश्यकता दी क्या थी ? वास्तव में इस अ्रश्न का कोई संतोप-जनक उत्तर नहीं दिया जा सकता । उत्तर तो बहुत हैं पर उन का सूल्य प्रशन- कर्ता के अध्ययन और चौद्धिक योग्यता पर निर्भर है । जिस का यह दृढ़ विश्वास है कि मनुष्य कंचल पशुश्मों में एक पु है श्औौर उस की श्ावश्य- कताएं भोजन-पस्र तथा प्रजनन-कार्य संतानोत्पत्ति तक ही सीमित हैं उस के लिए उक्त प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है । परंदु जो मनुष्य को केवल पशु नहीं समकते जिन्हें मानव-घुद्धि और सानव-हृदय पर गये है जो यह सानते हैं कि मजुप्य सिर्फ़ रोटी खाकर जीवित नहीं रदता मनुष्य सोचने- चाला या विंचारशीक प्राणी है उन के लिए इस प्रश्न का उत्तर मिलना कठिन नहीं है । वास्तव में वे ऐसा प्रश्न ही नद्दीं करेंगे । मनुष्य श्रौर पु में सब से बढ़ा भेद यदद है कि मजुप्य जो कुछ करता हैं उस पर विचार करता है जब कि पशु को इस प्रकार की जिज्ञासा कभी पीड़ित नहीं करती । मजुप्य रोता है घौर रोने पर कविता क्िखता है हँसता श्र हँसने के कारणों पर विचार करता है पत्नी के होठों को चूमता हैं शरीर फिर सवाल करता हैं यद्द मोदद तो नहीं है ? पशु श्र सजुष्य दोनों को दुःख उठाना पदते हैं दोनों की सत्यु होती हैं परंतु दुःख धर म्त्यु पर विचार करना मनुष्य का ही कास हैं । यद समझना भूल होगी कि दार्शनिक विचारकों को दुम्ख और रुस्युर से कोई विशेष प्रेम ोता है । चास्तव में दाशंनिक सत्यु धर दुम्ख पर इस लिए घिचार करते हैं कि वे जीवन के झंग हैं 1
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