मूल्यांकन | Mulyankan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द मूल्यांकन (१)
राष्ट्रीय काव्य सबके सम्बन्ध में ससान रूप से सत्य है......
“***»«»-“ईस विरोध को देखकर कुछ लोग भ्रम में पड़
जाते हैं। बात यह है कि भारतेन्दु-साहित्य का निर्माण उस
काल में हुआ जब कि विदेशी शक्ति के विरुद्ध, उख विद्रोह
के बाद, जिसे अंग्रेज ऐतिहासिकों ने सिपाही-विद्रोह मात्र
कहा है, देश में सर्वत्र निराशा, उत्साइहीनता और हाहा-
कार मचा हुआ था। सिपाही विद्रोह का तो अंग्रेजों ने
अपनी आधुनिक शक्ति से दमन कर दिया था। उस दुर्दिन
मे असहाय रौर परास्त जनता अंग्रेजी राज्य का मुह द
ताकने के सिवा और क्या कर सकती थी? भारतेन्दु की
राजभक्ति की रचनाओं में हम वास्तव में तत्कालीन विवशता-
पूर्ण स्थिति की ही दयनीय भावना पाते हैं |? --
| ( ४० ८३-८४ | )
“इस सम्बन्धमे इस वात की भी चर्चा कर देना अप्रासं-
गिक नहीं होगा कि इस क्षेत्र में भारतेन्दु की कला बहुत
कुछ अंशों में निराशाबादी है। “मारत दुर्दशा” और
“नील-देवी” में जो विषादान्त दृश्यों की उन्होंने योजना की
है, वह उनकी इसी मनोबृत्ति का सूचक है। वास्तव में
सिपाही-विद्रोह के (गहरे आघात और पतन के बाद देश में
जो एक निराशापूण हाहाकार व्याप्त हो गया था, भारतेन्दु
को वाणी में हम उसी का स्वर चौर आतैनाद सुनते है । इस
स्थिति में भारतेन्दु ने यदि आशा का संचार किया भी हे तो
भारत के आचीन गौरवशाली इतिहास की ओर संकेत करके ही।
“:- ~य भाव कवि कं सच्चे हृद्य ऊ उद्गार थे । यह् सचाई
ओर सफाई भारतेन्दु की कला की सवे बड़ी शक्ति है |
उन्होंने एंक शब्द भी ऐसा नहीं कहा है जो उनके सच्चे हृदय
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